भुखमरी आज के समाज की एक सच्चाई है परन्तु मध्यप्रदेश के सहरिया आदिवासियों के लिये यह सच्चाई एक मिथक से पैदा हुई, जिन्दगी का अंग बनी और आज भी उनके साथ-साथ चलती है भूख. अफसोस इस बात का है कि सरकार अब जी जान से कोशिश में लगी हुई है कि भूखों की संख्या कम हो. वास्तविकता में भले इसके लिये प्रयास न किये जायें लेकिन कागज में तो सरकार...
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हरी वादियों का चितेरा
अस्सी के दशक की शुरुआत से ही एक अकेले व्यक्ति के शांत प्रयासों ने ऐसे ग्रामीण आंदोलन की नींव रखी जिसने उत्तराखंड की बंजर पहाड़ियों को फिर से हराभरा कर दिया। सच्चिदानंद भारती की असाधारण उपलब्धियों को सामने लाने का प्रयास किया संजय दुबे ने। (तहलका-हिन्दी से साभार) शायद ही कुछ ऐसा हो जो संच्चिदानंद भारती को उफरें खाल के बाकी ग्रामीणों से अलग करता हो। ये तो जब वो...
More »खत्म हो जन वितरण प्रणाली
पटना। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पीडीएस यानि जन वितरण प्रणाली में फैले भ्रष्टाचार को देखते हुए केंद्र से इस योजना को बंद करने की मांग की है। पटना में रविवार को गरीबी उन्मूलन सेमिनार में बोलते हुए नीतीश कुमार ने कहा है कि जन वितरण प्रणाली में फैले भ्रष्टचार की जड़े काफी गहरी हो चुकी हैं। भ्रष्टाचार को खत्म करना आसान नहीं है जिसकी वजह से गरीबों तक उनका हक नहीं पहुंच पा रहा...
More »खुले में ही गेहूं भंडारण को एफसीआई मजबूर
जागरण ब्यूरो [नई दिल्ली]। भारतीय खाद्य निगम [एफसीआई] ने मान लिया है कि चालू रबी सीजन में खरीदे जा रहे गेहूं के लिए गोदाम उपलब्ध नहीं होंगे। उसके पास सिर्फ 46 लाख टन अनाज के भंडारण के लिए गोदाम हैं, जबकि चालू सीजन में 262 लाख टन गेहूं की खरीद होनी है। यानी गेहूं का भंडारण खुले में ही जैसे-तैसे किया जा सकता है। पंजाब और हरियाणा में अभी भी 67 लाख टन अनाज...
More »धरती कहे पुकार के
ढ़ती हुई कीमतें उस आपदा का सिर्फ एक संकेत हैं, जिससे खेती जूझ रही है. दरअसल भारतीय कृषि क्षेत्र बुरी तरह से चरमरा रहा है. संकट से पार पाने के लिए नजरिए में बड़े बदलावों की जरूरत है. लेकिन कृषि मंत्री शरद पवार आपदा की इस आहट को सुनने के लिए तैयार नहीं. अजित साही और राना अय्यूब की रिपोर्ट सरकारी नीतियों से लेकर अखबार की सुर्खियों तक तरजीह पाने वाली...
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