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नेशनल फाउंंडेशन फॉर इंडिया का मीडिया अवार्ड कार्यक्रम, आवेदन की अंतिम तारीख 30 दिसंबर

नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया ने अपने मीडिया अवार्ड कार्यक्रम 2018 के लिए आवेदन आमंत्रित किए हैं. यह अवार्ड कार्यक्रम युवा और पत्रकारिता के क्षेत्र में कुछ सालों तक योगदान कर चुके पत्रकारों के लिए है.   अवार्ड कार्यक्रम के जरिए चयनित पत्रकार राष्ट्रीय महत्व के वैसे मुद्दों पर अपने शोध आलेख/ या फोटो-लेख प्रकाशित कर सकेंगे जिनपर मीडिया में पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है. अवार्ड कार्यक्रम में गहरी छान-बीन पर आधारित...

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तंग नज़रिये के प्रतीकों का पोषण-- एस निहाल सिंह

फिल्म पद्मावती को लेकर छिड़ा विवाद एक बड़ी समस्या की ओर इशारा करता है। केंद्र में 2014 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद से अभिव्यक्ति की आजादी तथा अपने अंदाज़ में ज़िंदगी जीने के लिए जगह सिकुड़ती जा रही है। दूसरा, सार्वजनिक बातचीत में सतहीपन आ गया है, जबकि कांग्रेस के शासनकाल में ऐसा नहीं होता था। इसके कारण कहीं दूर तलाश करने की जरूरत नहीं। आरएसएस के...

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परदेसी मीडिया का पूर्वाग्रह-- तवलीन सिंह

पिछले सप्ताह न्यूयार्क टाइम्स में एक लेख छपा था, जिसे पढ़ कर कई भारतीयों का खून खौलने लगा। मेरा भी। इसलिए कि इतना बकवास लेख में मैंने पहली बार पढ़ा होगा। लेखक भारतीय मूल का था शायद, लेकिन इतना भी नहीं जानता था कि हर हर महादेव का मतलब यह नहीं है कि हम सब शिव हैं। यही एक गलती होती इस लेख में तो उस पर लिखने की जरूरत...

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नोटबंदी का हासिल कुछ नहीं-- तवलीन सिंह

नोटबंदी की सालगिरह पर पिछले हफ्ते दोनों पक्षों ने अपने आप को सही साबित करने की कोशिश की। वित्तमंत्री ने दावा किया कि नोटबंदी करके नरेंद्र मोदी ने साबित किया है दुनिया की नजरों में कि भ्रष्टाचार और काले धन को मिटाने के इस महासंग्राम में वे अपने राजनीतिक फायदे और अपनी लोकप्रियता को भी ताक पर रख सकते हैं। दूसरी तरफ थे अपने अक्सर मौन रहने वाले पूर्व प्रधानमंत्री,...

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शेल कंपनी कथा दूसरी कड़ी : काले धन के खिलाफ जंग राजधर्म है-- हरिवंश

राजनीति विचारधारा या भावना से चलती है और अर्थनीति शुद्ध स्वार्थ की नीितयों से. पिछले 60-70 वर्षों में एक तरफ राजनीति में भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक जंग की बात भारत में बार-बार हुई, तो दूसरी तरफ भ्रष्ट ताकतों ने आर्थिक नियमों, कंपनी कानूनों को ऐसा बनाया कि भ्रष्टाचार की जड़ें लगातार मजबूत होती गयीं. शेल कंपनियां ऐसे ही कंपनी कानूनों की उपज हैं, पर आश्चर्य यह है कि 60-70 वर्षों...

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