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महामारी के दौर में बहुआयामी गरीबी के चक्र में फंसे लोग, 3 से 10 साल तक पिछड़ सकते हैं विकासशील देश!

बहुआयामी गरीबी मौद्रिक यानी पैसे आधारित गरीबी नहीं है बल्कि यह गैर-मौद्रिक आधारित गरीबी है, जो सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने की चुनौतियों से दृढ़ता से जुड़ी है. हालाँकि पहले गरीबी को केवल मौद्रिक यानी धन आधारित गरीबी के संदर्भ में ही परिभाषित किया गया था, लेकिन अब गरीबी को लोगों के अनुभवों की जीवंत वास्तविकता और उनके द्वारा भोगे जाने वाले अनेकों अभावों से जोड़कर देखा जाता...

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जो प्याज हम 60-90 रुपए प्रति किलो में खरीद रहे, वही प्याज किसानों से 25-30 रुपए किलो के भाव से खरीदा जा रहा

पांच नवंबर को मुंबई में खुदरा भाव में प्याज 90 रुपए किलो, दिल्ली और लखनऊ में 70 रुपए किलो तो बनारस के आसपास प्याज 60 से 80 रुपए किलो में बिका। लेकिन प्याज की एक बड़ी मंडी में छह नवंबर को एक किसान का प्याज 1,500 रुपए कुंतल में और एक दूसरे किसान का 1,100 रुपए कुंतल यानी थोक में 15 और 11 रुपए किलो के हिसाब से बिका। मध्य...

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बिहार के प्रवासी: दो वक़्त की रोटी के लिए दिल्ली में फँसी 'ज़िंदा क़ौमें'

-बीबीसी, ज़िंदा क़ौमें पाँच साल तक इंतज़ार नहीं करतीं. उत्तर पूर्वी दिल्ली के सोनिया विहार में दो दिन बिताने के बाद समाजवादी नेता डॉक्टर राम मनोहर लोहिया की कही ये बात बार-बार ज़हन में घूमती हैं. लोहिया का कहना था कि बुनियादी अधिकारों के लिए पाँच बरस तक इंतज़ार नहीं किया जा सकता लेकिन बिहार के लाखों प्रवासी न जाने कितने दशकों से इंतज़ार ही कर रहे हैं. वैसे तो बिहार के लोग पूरे...

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बिहार चुनाव : मक्का किसानों को लागत से कम मिलता है दाम

-न्यूजक्लिक, "लाभ की बात छोड़िये, इस साल मक्‍का की लागत भी नहीं निकली है, इस बार भारी नुकसान हुआ है, क्या करें। सरकार केवल ढ़ोल पीटती है कि किसान को एमएसपी मिल रही है; किसान की आय बढ़ने के सभी दावे झूठे हैं, त्रिलोक दास जोकि बाढ़ वाले क्षेत्र कोशी से मक्का बौने वाले किसान हैं ने उक्त बातें कहीं, यह वह इलाका है जिसे सीमांचल क्षेत्र के साथ मक्का की...

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बिहार: कमाने के लिए पंजाब गए कामगार सिख धर्म क्यों अपना रहे हैं

-द वायर, बिहार के अररिया जिले में इस साल अक्टूबर के पहले हफ्ते तक काफी तेज बारिश हुई थी. बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि पता नहीं पहले ऐसा कब हुआ था. इसके चलते कई इलाके में बाढ़ आ गया. इसके निशान एक महीने बाद भी जगह-जगह दिखते हैं. निचले इलाको के खेतों और गड्ढों में अब भी पानी है. इन इलाकों से गुजरने पर कई बच्चे जलजमाव से हिस्से में मछली निकालते हुए...

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