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काहे रे नदिया तू बौरानी!-- अनिल रघुराज

पानी गले तक आ जाये, तो औरों का भरोसा छोड़ कर खुद ही सोचना और खोजना पड़ता है कि बचने का क्या रास्ता है. दो साल के सूखे के बाद सामान्य माॅनसून ने पूरब से लेकर उत्तर भारत के तमाम इलाकों में यही हालत कर दी है. शहरों, कस्बों व गांवों में लोग घरों से निकल कर सड़कों पर आ गये हैं. नदियां बावली हो गयी हैं. कई जगह तो...

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अर्थव्यवस्था और भ्रष्टाचार का घुन-- अरविन्द कुमार सिंह

दुनिया के अनेक देशों की तुलना में भारत भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में पिछड़ रहा है। यह स्थिति तब है जब यहां भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई के लिए कानूनों से लैस तमाम एजेंसियां हैं और नागरिक समाज आंदोलित है। वैसे तो भ्रष्टाचार ने पूरी दुनिया को गिरफ्त में ले रखा है, लेकिन अगर भारत की बात करें तो जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जहां भ्रष्टाचार का बोलबाला न...

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देश में कुपोषण की कड़िया--- श्रीशचंद्र मिश्र

ओड़िशा के जाजपुर जिले के एक छोटे-से आदिवासी बहुल गांव में इस साल मार्च से जून के बीच कुपोषण से बारह बच्चों की मौत हो गई। पौने तीन सौ की आबादी वाले इस गांव में पांच से बारह साल के तिरासी बच्चों में एक तिहाई से ज्यादा का कुपोषित होना एक बड़े खतरे की तरफ संकेत करता है। यह तस्वीर का सिर्फ एक पहलू है। असल स्थिति क्या है, इसका...

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फसल का नहीं खेती का बीमा हो!-- बिभाष

खेती की जब बात आती है, तो सभी आकाश की ओर ताकते हैं. अगर माॅनसून का समय और उसकी मात्रा उचित या पर्याप्त नहीं है, तो राजनीति की गति और दिशा दोनों बदल जाती है. बजट से लेकर बाजार तक सब आकाश ही निहारते हैं. कृषि में जोखिम प्रबंध बहुत ही कमजोर है.  हरित क्रांति का चाहे जिस तरह से विश्लेषण या आलोचना करें, लेकिन उसने हमारी कृषि को तात्कालिक...

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राज्य और केंद्र के झगड़े में भुगतेंगे बिहार के किसान

पटना : प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की प्रीमियम राशि को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के झगड़े में राज्य के 16 लाख से अधिक किसानों को बीमा का लाभ इस साल नहीं मिल पायेगा. राज्य सरकार को इस बीमा योजना पर साढ़े छह सौ करोड़ रुपये खर्च करना होगा. इतनी ही राशि केंद्र सरकार भी वहन करेगी. 15 अगस्त तक राज्य सरकार को बीमा कंपनियों का चयन कर...

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