प्रिय प्रधानमंत्री जी, मुझे यह जानकर खुशी हुई कि सुप्रीम कोर्ट को ‘‘सम्मानपूर्वक’’ फटकारते हुए आप ने कहा है कि अनाज, सड़ते हुए खाद्यान्न का निपटारा जैसे सभी सवाल नीतिगत मामले हैं. आप बिल्कुल सही कह रहे हैं और बहुत दिनों बाद ऐसा किसी ने कहा है. ऐसा कर आप संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सार्वजनिक बयानबाजी में ईमानदारी लाने की एक छोटी-सी कोशिश कर रहे हैं, जिसकी बहुत कमी महसूस की जा रही थी. बेशक यह...
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हिंसक प्रतिरोध कितना उचित- हर्षमंदर
बहुतेरी संस्कृतियों में अन्याय के प्रतिरोध को सर्वोच्च मानवीय दायित्व का दर्जा दिया गया है। इसी क्रम में एक बहस सदियों से जारी है और आज भी प्रासंगिक बनी हुई है। यह है अत्याचार और अन्याय के प्रतिरोध में हिंसा की वैधता। सवाल यह है कि अगर राज्यसत्ता के कुछ सशक्त प्रतिनिधि अगर अन्यायपूर्ण हो गए हों तो क्या उनके प्रतिरोध के लिए हिंसा उचित है? दूसरे शब्दों में क्या न्याय के...
More »गरीबी, खाद्य सुरक्षा और कैश ट्रांसफर- रितिका खेड़ा
कुछ महीने पहले योजना आयोग की गरीबी रेखा पर काफी चर्चा हुई हैं. उच्चतम न्यायलय में दायर हलफनामे में योजना आयोग ने कहा कि 2011 की सरकार की गरीबी रेखा- ग्रामीण क्षेत्रों में 26 रुपए और शहरी क्षेत्रों में 32 रुपए- जीवनयापन यानी खाना, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त है. आज से पहले किसी भी सरकार ने यह दावा नहीं किया कि गरीबी रेखा जीवन बिताने के लिए पर्याप्त...
More »इन बच्चों का क्या कसूर?- हर्षमंदर
गरीबों के बच्चे मवेशी चराते हैं और चटाई बुनते हैं, वे शहर के कूड़ागाहों और ट्रैफिक सिगनल्स पर पाए जाते हैं, ईंट-भट्टे और कोयला खदानें आमतौर पर उनके काम करने की जगहें होती हैं। जब हमारे बच्चे स्कूलों में पढ़ाई करने जाते हैं, तब गरीबों के बच्चे रोजी-रोटी के लिए मशक्कत कर रहे होते हैं। लेकिन बड़ी अजीब बात है कि हमने महज इस संयोग के आधार पर इन बच्चों की इस...
More »कितना मुफ्त कितना अनिवार्य- विजय विद्रोही
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में शिक्षा के अधिकार कानून की वैधानिकता बरकरार रखते हुए देश के हर गरीब बच्चे की उम्मीदें जगाई हैं। शिक्षा के अधिकार को पूरी तरह से कामयाब बनाने के लिए अगले पांच वर्षों में करीब दो लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे, जिसमें से 65 प्रतिशत केंद्र और 35 प्रतिशत राज्य सरकारें वहन करेंगी। जिस देश में छह से चौदह वर्ष तक की उम्र के...
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