दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जब यूरोप की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई, उस समय उद्योगों को मूलमंत्र मानकर विकास की रूपरेखा तैयार की गई। इसी समय दो बड़े परिवर्तन भी हुए। पहला, विकास की परिभाषा इस तरह गढ़ दी गई, जिसका सीधा-सीधा मतलब था कि उद्योग और उससे जुड़े तमाम आयामों को ही विकास मान लिया जाए। दूसरा, इसके बाद ही भोगवादी सभ्यता का चलन बढ़ा। अपने देश ने भी स्वतंत्रता के बाद...
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मुंबई पर भी मंडरा रहाभूस्खलन का खतरा
ओम प्रकाश तिवारी, मुंबई। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर भी भूस्खलन का खतरा मंडरा रहा है। झमाझम हो रही बारिश किसी भी वक्त मुंबई में पुणे के मालिन गांव से जैसे हालात पैदा कर सकती है। महानगर के 327 पहाड़ी क्षेत्रों में 22384 से ज्यादा झोपड़े आबाद हैं जो कभी भी भूस्खलन का शिकार हो सकते हैं। मुंबई झोपड़ पट्टी विकास बोर्ड ने अप्रैल 2010 में राज्य सरकार को अपनी...
More »मिट्टी में दब गया एक गाँव
महाराष्ट्र के पुणे ज़िले के एक आदिवासी गांव में भूस्खलन के बाद मलबे में से दस लोगों को निकाला जा चुका है जबकि इसमें दबकर कम से कम 20 लोगों की मौत हो गई है. ये हादसा पुणे से लगभग 100 किलोमीटर दूरी पर आंबेगांव तालुका में स्थित मालीण गांव में हुआ. ये गांव 50 मीटर के दायरे में फैला हुआ है. इस गांव में करीब 70 घर बताए जा रहे हैं...
More »कब तक खुले रहेंगे मौत के फाटक? -अनूप कृष्ण झींगरन
भारतीय रेलवे विश्व के विशालतम रेलवे तंत्रों में से एक है। इतने विस्तृत तंत्र पर आए दिन रेल दुर्घटनाएं भी होती रहती हैं। हालांकि आंकड़ों के अनुसार यात्रियों की संख्या, तंत्र के विस्तार तथा रेल यातायात को देखते हुए भारतीय रेल एक अपेक्षाकृत सुरक्षित तंत्र है, जहां पर हताहतों की संख्या की दर 0.01 यात्री प्रति दस लाख किलोमीटर है। परंतु एक भी बड़ी दुर्घटना होने पर दक्षता के सारे...
More »जनसंख्या के बढ़ते बोझ को भोजन उपलब्ध कराने ऊपरी व शुष्क भूमि की उपयोगिता बढ़ाना है जरूरी
वैज्ञानिकों में भ्रम है कि हम उन्नत तकनीक की बात कर रहे हैं, तो पूर्व की परिस्थिति में ही सिर्फ निचली व मध्यम भूमि की उपयोगिता से काम चल जायेगा. लेकिन नयी परिस्थितियों में ऊपरी भूमि का उपयोग बढ़ाना जरूरी है. वहां ऐसी फसलें लगाने की जरूरत है जो कम पानी में और जल्दी तैयार हो जायें. जैसे मकई, मडुवा व 100 दिनों में तैयार होने वाला धान. मध्यम व निचली...
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