नई दिल्ली [अंशुमान तिवारी]। केंद्र सरकार ने अपने खर्च के नए तरीके से घोटालों को सुविधाजनक कर दिया है। विकास के मदों में सरकार का करीब 79 फीसद खर्च अब अनुदानों के जरिये होता है। अनुदानों के इस्तेमाल को जानने का सरकार के पास कोई भरोसेमंद तरीका नहीं है। इसलिए करदाताओं और कर्ज से मिले इस सरकारी पैसे की लूट सहज हो गई है। केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद के ट्रस्ट में...
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नकद पैसे का खेल- बनवारी
जनसत्ता 14 फरवरी, 2013: मनमोहन सिंह सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि गरीबी एक आर्थिक और राजनीतिक समस्या के बजाय अब केवल वित्तीय समस्या रह गई है। केंद्र सरकार की प्राथमिक चिंता अब न बेरोजगारी है, न महंगाई। देश की इन दो सबसे बड़ी समस्याओं से मुंह चुराने का उसने एक आसान उपाय निकाल लिया है। देश के गरीब लोगों के हाथ में दमड़ी रख दो; इससे सरकार के कल्याणकारी...
More »महिलाओं के हाथ में गांव का पानी प्रबंधन
राजधानी रांची से सटी पंचायत है खिजरी. नामकुम प्रखंड क्षेत्र में आने वाली इस पंचायत के नया टोला की आरती देवी की जिंदगी अब घर-परिवार व बच्चों तक सीमित नहीं है. आरती अब गांव में जल प्रबंधन का काम देखती हैं. उनके सरोकार अब एक सामान्य गृहिणी से बडे हैं. वे लोगों को पानी का बिल भी थमाती हैं और शुल्क की वसूली भी करती हैं. दरअसल उनके यहां ग्रामीण पेयजलापूर्ति योजना...
More »भुखमरी और कुपोषण के बीच संसद की स्थायी समिति की नई रिपोर्ट
भुखमरी और कुपोषण को मिटाने के मामले में देश कौन से कदम उठाये, इस बारे में जारी बहस को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा बिल की समीक्षा के लिए बनी स्थायी समिति की रिपोर्ट ने नए सिरे से छेड़ दिया है। गौरतलब है कि रिकार्डतोड़ अन्न-उपार्जन और साल-दर साल बनी रहने वाली उच्च वृद्धि दर के बावजूद कुपोषण और भुखमरी को मिटाने के मामले में भारत का रिकार्ड संतोषजनक नहीं रहा है।...
More »अभिशाप साबित हो रही हरित क्रांति योजना
संवादसूत्र, गोसाईगंज (सुल्तानपुर) : नि:शुल्क बोरिंग व उस पर मिलने वाला अनुदान किसानों के लिए अभिशाप साबित हो रहा है। कूरेभार विकास खंड में यह योजना कमीशनबाजी की भेंट चढ़ गई है। इसके तहत मिलने वाली पाइप घटिया किस्म की है। अधिकांश पाइपें बोरिंग के समय ही दगा दे रही हैं। यदि ठीकठाक से बोरिंग हो भी गई तो दो-चार महीने में उस पाइप से पानी निकलना बंद हो जा रहा...
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