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बच्‍चों को सिखाना ही हो तो खुद अपना फैसला लेना सिखाएं - प्रो. कृष्‍ण कुमार

हमारी शिक्षा व्यवस्था में आज यह कमजोरी है कि हम बच्चों के अपने अनुभवों को, उनकी अपनी स्वाभाविक बोली को, जुबान को बहुत जल्दी एक मानक भाषा में या एक मानक सोच के सांचे में ढाल देना चाहते हैं। हम अपनी व्यवस्था में एक छोटे बच्चे और किशोर में फर्क नहीं कर पाते। हालांकि शिक्षक सीखते जरूर हैं शिक्षक प्रशिक्षण में कि बाल मनोविज्ञान ऐसा होता है, शिशु ऐसा होता...

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वंचितों के उत्थान से ही देश का उत्थान-- आकार पटेल

भारतीय जनगणना, 2011 के अनुसार, देश में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लोगों की संख्या देश की कुल आबादी में 25 प्रतिशत से ज्यादा हो गयी है. इनमें 16.6 प्रतिशत दलित हैं और 8.6 प्रतिशत आदिवासी हैं. ये दो अन्य संज्ञाएं हैं, जिनके द्वारा इन समुदायों (जिन्हें अंगरेज अनटचेबल और ट्राइबल कहा करते थे) को संबोधित किया जाता है. भारत की एक चौथाई आबादी का अर्थ...

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सुप्रीम कोर्ट का निर्देश : 60 % कोटे में सारे केन्द्रीय कर्मचारियों के बच्चे को शामिल करें संस्कृति

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने आज संस्कृति स्कूल को अंतरिम उपाय के रूप में निर्देश दिया कि आगामी शैक्षणिक सत्र में 60 फीसदी कोटे में ऐसे सभी केंद्रीय कर्मचारियों के बच्चों को प्रवेश दिया जाए जिनकी नौकरी में स्थानांतरण का प्रावधान है.न्यायमूर्ति ए आर दवे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के अमल पर रोक लगाते हुये संस्कृति स्कूल से कहा कि 60 फीसदी...

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'नेट न्यूट्रैलिटी' है जरूरी, इंटरनेट पर क्यों हो किसी का एकाधिकार?

भारत में इंटरनेट का उपयोग करनेवालों की संख्या पिछले साल ही 35.4 करोड़ से अधिक हो चुकी थी. इसमें करीब 60 फीसदी इसका इस्तेमाल मोबाइल फोन पर करते हैं. यह संख्या लगातार बढ़ रही है. लेकिन, इंटरनेट तक सभी लोगों की पहुंच समान रूप से रहे या किसी कंपनी को अलग-अलग वेबसाइट्स के लिए अलग-अलग दरें और स्पीड तय करने का एकाधिकार मिले, इस पर इन दिनों जोरदार बहस...

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विज्ञान से दूर क्यों चली जाती हैं लड़कियां- ऋतु सारस्वत

मैसूर विश्वविद्यालय में महिला साइंस कांग्रेस के उद्घाटन समारोह में मानव संसाधन विकास मंत्री ने विज्ञान में महिलाओं के पिछड़ने के लिए पुरुषों के रवैये को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि सांइस प्लूटोनियम को संवर्धित कर सकती है, लेकिन पुरुषों के दिलों को नहीं बदल सकती। यदि ऐसा होता, तो महिलाओं को आगे लाने के लिए महिला साइंस कांग्रेस जैसे आयोजन की जरूरत नहीं पड़ती। आंकड़े बताते हैं कि...

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