इस समय भारत के आर्थिक माहौल के बारे में दो प्रतिस्पद्र्धी कहानियां हैं। दोनों की प्रकृति भले ही एक-दूसरे से अलग हो, लेकिन हैं दोनों सही। जेपी मॉरगन के मुख्य अर्थशास्त्री साजिद जेड चिनॉय की इन्हीं पंक्तियों के साथ आज मैं अपनी बात शुरू करना चाहता हूं। चिनॉय का यह लेख 19 जुलाई को मिंट में प्रकाशित हुआ था। शीर्षक था- इंडियन इकोनॉमी : अ टेल ऑफ टू नैरेटिव्स। जिन पाठकों...
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जीएसटी की जटिलता से बढ़ी उलझनें - रणदीप एस सुरजेवाला
कांग्र्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने एक सरल कर के रूप में जीएसटी की जो परिकल्पना की थी, उसका मकसद देश में केवल एकसमान टैक्स लागू करना ही नहीं, बल्कि उसकी दरें भी कम करना था। इससे कर ढांचा सरल होने के साथ ही महंगाई में भी खासी कमी आती। 2011 में कांग्र्रेस सरकार ने 115वें संविधान संशोधन विधेयक के जरिए जो जीएसटी विधेयक पेश किया था, वह न...
More »GST लागू फिर भी बचे रह गए ये 10 तरह के टैक्स, जानिए
नई दिल्ली। एक देश एक कर की अवधारणा को लेकर अगर आप कोई खुशफहमी पाले बैठे हैं तो जरा ठहरिए। आपको बता दें कि एक जुलाई से लागू हुए वस्तु एवं सेवा कर कानून (जीएसटी) ने भले ही 17 तरीके के टैक्स (केंद्र और राज्य स्तर के) और 23 तरह के सेस (उपकर) को खत्म कर दिया हो, लेकिन अभी भी 10 तरीके के ऐसे कर हैं जो आगे भी...
More »किस हद तक माफ हों कर्ज-- आर. सुकुमार
भारत में इस मानसून की यदि कोई थीम है, तो मेरी राय में वह ‘कर्ज' है। तीन मामले आपके सामने रख रहा हूं। पहला, रिजर्व बैंक अपनी नई ताकतों से परिचय करा रहा है। नई बैंकरप्सी कोड के तहत उसने 12 बड़ी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की है। इन कंपनियों पर हमारे बैंकिंग सिस्टम के कुल एनपीए यानी डूबे हुए कर्ज का लगभग एक चौथाई हिस्सा बकाया है। यह रकम...
More »आत्महत्या और हत्या के बीच-- रविभूषण
सौ साल पहले (1917) साप्ताहिक पत्र 'प्रताप' के वार्षिक विशेषांक में गणेश शंकर विद्यार्थी ने 'भारतीय किसान' शीर्षक लेख में लार्ड कर्जन को उद्धृत किया था- 'भारतीय किसान राजनीति नहीं जानते, पर उसके बुरे-भले फलों को भोगते हैं...' कर्जन ने किसानों को 'देश की हड्डियां और नसें' कहा था. कृषि उन्नति मेला 2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के भाग्य को गांवों और किसानों से, कृषि-क्रांति से जोड़ा था. यह...
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