संदीप चंसौरिया/शशिकांत तिवारी, भोपाल। बड़वानी में जिस संक्रमित आईवी फ्लूड के कारण 43 लोगों की एक आंख की रोशनी चली गई, वह बीएफएस (ब्लो फिल्ड शील्ड) प्लास्टिक की बॉटल में भरा होता है। इस बॉटल की कीमत आठ रुपए है, जबकि इससे महज 2 रुपए महंगी 10 रुपए की एफएफएस (फॉर्म फिल्ड शील्ड) में भरे आईवी फ्लूड के संक्रमिक होने का खतरा कई गुना कम हो जाता है। बड़वानी घटना की...
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कानूनों पर ठीक से अमल हो तो बदलना ही क्यों पड़े? - संतोष कुमार
जिस जल्दबाजी के साथ हम कानूनों में संशोधन कर लेते हैं, उससे साफ होता है कि हम अपने कानूनों को बहुत गंभीरता से नहीं लेते। 2013 और 2015 में क्रिमिनल लॉ या जुवेनाइल जस्टिस कानून में किया गया गया बदलाव इसी बात को साबित करता है। 2013 में बदलाव तब हुआ, जब निर्भया के साथ ज्यादती हुई और 2015 में तब जबकि उसके साथ बर्बरता से पेश आने वाला किशोर...
More »दसवीं कक्षा में पढ़ा रहे आबादी नियंत्रण का तरीका गर्भपात! शिक्षा विभाग विवादों में
रायपुर। बेरोजगारी का कारण महिलाओं का रोजगार पाना, चैप्टर पढ़ाकर विवादों में आया छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग अब एक और नए विवाद में घिर गया है। कक्षा दसवीं की सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में जनसंख्या विस्फोट के उपचार को लेकर गर्भपात के तरीकों को पढ़ाया जा रहा है। हिन्दी माध्यम की पुस्तक में पेज क्रमांक 197 में लिखा गया है- ' भारत में सुरक्षित गर्भपात के लिए आवश्यक अस्पताल और नर्सिंग...
More »बिहार: 50 लाख परिवारों को मुफ्त बिजली कनेक्शन अप्रैल से
अगले दो सालों में बिहार के 50 लाख ग्रामीण परिवारों को मुफ्त बिजली कनेक्शन देने की घोषणा बिहार सरकार ने की है। बिजली कंपनियों को इसके लिए लक्ष्य भी दे दिया गया है। चुनावी मैदान में जाने के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सात निश्चयों में से ये भी एक था। बीते दिनों उर्जा विभाग की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद बिजली कंपनियों ने आज इसकी घोषणा की।...
More »आधी-आबादी : इंसाफ का इंतजार-- अवनीश सिंह भदौरिया
दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की शिकार निर्भया के मामले में अपराधियों को कमोबेश सजा मिल भी गई, लेकिन इस तरह के तमाम मामलों में आज भी इंसाफ का इंतजार है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में लड़कियों की सुरक्षा के जितने भी प्रबंध हैं, वे नाकाफी हैं। लड़कियों, महिलाओं और बच्चियों के लिए दिल्ली या दूसरे राज्य कितने सुरक्षित हैं, इसके जीते जागते उदाहरण प्रतिदिन अखबारों और टीवी चैनलों पर पढ़ने-देखने को...
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