छत्तीसगढ़ के सुदूर अंचलों में आज भी महिलाओं को पुरुषों से ऊंचा दर्जा दिया जाता है और इसकी शुरुआत होती है परिवार में बेटियों को तवज्जो देने से. लेकिन राज्य की राजनीति में यह तस्वीर बिल्कुल उल्टी है. प्रियंका कौशल की रिपोर्ट. राजनीति में परिवारवाद ऐसी बुराई हो चली है जिसके खिलाफ कोई मुहिम नहीं छेड़ी जा सकती. अब यदि ऐसा है तो क्या इसमें कुछ सकारात्मक पक्ष खोजा जा सकता...
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बहती धारा को बलपूर्वक रोका गया : वासवी
स्त्री एवं पुरुष समाज रूपी रथ के दो पहिया हैं. एक पहिया कमजोर हो जाय या टूट जाय तो रथ के आगे बढ़ने की संभावना क्षीण हो जाती है. इसके बाद भी बेटे को लेकर हमारा समाज जितना संजीदा है उतनी बेटियों को लेकर नहीं है. यही वजह है कि बेटियों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण एवं सुरक्षा की समस्या गंभीर बनी हुई है. बेटियों के मामले में कल्याणकारी राज्य के भी जो...
More »‘हमारे गांव में हम ही सरकार’- अतुल चौरसिया
महाराष्ट्र के मेढ़ा गांव का उदाहरण बताता है कि स्वाभिमान और स्वावलंबन के साथ आजीविका का अवसर मिले तो नक्सलवाद से जूझते इलाकों में खुशहाली का नया अध्याय शुरू हो सकता है. अतुल चौरसिया की रिपोर्ट. महाराष्ट्र के गढ़चिरोली की सबसे बड़ी पहचान फिलहाल यही है कि यह नक्सल प्रभावित जिला है. आदिवासी और जंगल की बहुलता वाले इस जिले की धनौरा तहसील में एक गांव है मेढा. मेढा और लेखा...
More »कहां पहुंची यह मूक क्रांति!- कमल नयन चौबे
प्रसिद्ध राजनीतिशास्त्री क्रिस्टोफ जेफरलॉट ने अपने लेख ‘कास्ट एंड राइज ऑफ माजिर्नलाइज्ड ग्रुप्स' में राजनीतिक रूप से शक्तिशाली रही अभिजन जातियों के वर्चस्व को चुनौती देते हुए मध्यवर्ती जातियों के उभार को सत्ता के हस्तांतरण के तौर पर देखा है और इसे एक मूक क्रांति की संज्ञा दी है. लेकिन क्या यह मूक क्रांति वास्तव में अपने लक्ष्यों को लेकर आगे बढ़ रही है? क्या जाति आधारित राजनीति में साधन यानी...
More »जाति की नई राजनीति- बद्रीनारायण
जनतंत्र सत्ता एवं सामाजिक संरचना के पिरामिड में उथल-पुथल मचाता रहता है। कई बार कई समाजों में जो सामाजिक समूह नीचे रहे हैं, उन्हें वह ऊपर, और जो ऊपर रहे हैं उन्हें वह नीचे ला देता है। लेकिन खासकर ‘भारतीय जनतंत्र' से सामाजिक पिरामिड के ‘ऊपर' और ‘नीचे' को समाप्त कर समानता लाने की अपेक्षा अब भी दूर की कौड़ी ही है। भारतीय समाज एवं राजसत्ता के शीर्ष पर ब्राह्मण और...
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