जनसत्ता 16 अक्टुबर, 2012: दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, सवा अरब लोगों का। छह-सात प्रतिशत की दर से बढ़ती अर्थव्यवस्था। पर इसकी अधिकांश आबादी को अब तक ‘ट्रिकल डाउन’ यानी अमीरों के उपभोग से रिस कर मिलने वाले लाभ का ही आसरा है। छीजते जाते संसाधन, बिगड़ता जाता पर्यावरण, जलावतनी और विस्थापन, एक-दूसरे को काटती और खारिज करती पहचानें, लगभग एक-तिहाई से भी अधिक भूभाग सैन्यबलों के भरोसे, और इतने पर भी धन...
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मुलायम के समय हुआ भू-आवंटन रद्द करने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
नई दिल्ली. यूपी की मुलायम सरकार द्वारा 2005 में समाजवादी पार्टी के नेताओं और नौकरशाहों को किया गया भू-आवंटन रद्द नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में दायर जनहित याचिका गुरुवार को खारिज कर दी। जस्टिस आफताब आलम की अध्यक्षता वाली बेंच ने पेशे से वकील विश्वनाथ चतुर्वेदी की याचिका की सुनवाई से इनकार कर दिया। बेंच को राज्य सरकार ने बताया था कि मुलायम सरकार द्वारा आवंटित जमीन के लाभान्वितों में चतुर्वेदी भी...
More »यह नया कितना पुराना- कुमार प्रशांत
जनसत्ता 14 अगस्त, 2012: देश को नए मंत्री मिल गए हैं। देश की गहरी समस्याओं के जनक रहे पुराने लोग नई पोशाकों में आ खड़े हुए हैं। देखते हैं तो उनके हाथों में तलवारें भी वही बाबाआदम के जमाने की हैं- कागजी! सारे देश में सूखा पड़ा है और अभी अचानक बिजली चले जाने का नया रोग भी गहरा अंधेरा बनाने लगा है। इसे अगर एक प्रतीक से जोड़ कर...
More »इक्कीसवीं सदी की बाधा दौड़- सुभाष गताड़े
महाराष्ट्र के नागपुर क्षेत्र में अनुसूचित जाति, जनजाति एवं अन्य पिछड़ी जातियों से आने वाले दस हजार से अधिक छात्र सरकार के समाज कल्याण महकमे की आपराधिक लापरवाही के चलते क्या प्रोफेशनल पाठ्यक्रमों में इस साल प्रवेश नहीं ले सकेंगे? और शासकीय कॉलेजों में उनके प्रवेश को महज इसी वजह से रोका जाएगा, क्योंकि उनके पास जाति वैधता प्रमाणपत्र नहीं हैं, जबकि इन तमाम छात्रों ने सालभर पहले ही आवेदन...
More »कड़वे बादाम : दिल्ली के बादाम उद्योग में मज़दूरों का शोषण
उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दूर-दराज़ कोने में बसी हुई, शोर-ग़ुल और चहल-पहल भरी करावलनगर की बस्ती, अनौपचारिक क्षेत्र के उद्यमों का एक उभरता हुआ केन्द्र है, जहाँ बड़ी संख्या में प्रवासी मज़दूर और उनके परिवारों को रोज़गार मिलता है। ये उद्यम किसी भी मानक से छोटे नहीं है। वैश्विक सम्बन्धों की जटिल श्रृंखला में बँधे ये उद्यम, सालभर चालू रहते हैं और हज़ारों मज़दूरों के रोज़गार का स्रोत हैं। कई करोड़...
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