ईवीएम विवाद एक बार फिर गरम हो उठा है। साल 1982 से जब से ईवीएम का इस्तेमाल शुरू हुआ है, तब से इस पर विवादों की छींटे पड़ते रहे हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने बार-बार यह साफ किया है कि यह व्यवस्था सुरक्षित और चाक-चौबंद है। ईवीएम का निर्माण इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (परमाणु ऊर्जा विभाग का एक उद्यम) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (रक्षा विभाग के अधीन) करते हैं, और...
More »SEARCH RESULT
खैरात बांटती राजनीति का सच -- अनुपम त्रिवेदी
अपने पिछले लेख में मैंने लोकतंत्र के दुरुपयोग और उसके बिगड़ते स्वरूप का उल्लेख किया था. यह भी जिक्र किया था कि कैसे राजनीतिक दल लोकतंत्र के नाम पर अनाचार में संलिप्त रहते हैं. उसी कड़ी में आज जिक्र एक ऐसे मुद्दे का, जिसने न केवल लोकतंत्र को कमजोर किया है, बल्कि हमारी खुद्दारी और स्वाभिमान पर भी गहरी चोट की है. बात है उस खैरात की, जिसे हर राजनीतिक...
More »असहमति के अस्वीकार का दौर-- पवन के वर्मा
यह तो मैं समझ सकता हूं कि अपने देश में कुछ लोग उमर खालिद से इत्तिफाक नहीं रखते. मैं यह स्वीकार करने को भी तैयार हूं कि कुछ लोगों के अनुसार उसके विचार राष्ट्रविरोधी हैं. लेकिन, जो कुछ मैं नहीं समझ सकता, वह यह कि चूंकि ये लोग उससे सहमत नहीं हैं, इसलिए वे उसे बोलने नहीं देंगे. और मुझे यह भी मंजूर नहीं कि देशभक्त होने की परिभाषा राष्ट्रीयता...
More »युवा हरदम रहा है आजादखयाल - मृणाल पांडे
कहना कठिन है कि जेएनयू के कमउम्र छात्रों तथा परिसर की गोष्ठियों में कुछ प्रत्याशित सी बहसों तथा अचानक आए अनजान लोगों की उकसाऊ नारेबाजी से सरकार ने एकदम उखड़कर शिक्षकों सहित उस परिसर को लगभग अपना भीषण दुश्मन क्यों मान लिया होगा? इस बात के तूल पकड़ने पर बेवजह उसने देश भर के अकादमिक जगत तथा मीडिया के बडे हिस्से से बेवजह दुश्मनी साध ली, पर अब लगता है...
More »आस्तियां कैसे बनीं अस्थियां!-- अनिल रघुराज
हम ऋण लेते हैं, तो वह हमारे लिए बोझ या देनदारी होता है. मशहूर कहावत भी है कि अगर हमें बैंक को 100 रुपये लौटाने हैं, तो यह हमारी समस्या है, लेकिन हमें अगर 100 करोड़ लौटाने हैं, तो यह बैंक की समस्या है. दरअसल, बैंक जब ऋण देता है, तब वह उसके लिए आस्ति होती है, क्योंकि मूलधन समेत उस पर मिला ब्याज ही उसकी कमाई का मुख्य जरिया...
More »