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वर्ल्ड टीबी डे: चार दशक से नहीं आई टीबी की नई दवा

ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) बीमारी से निजात पाने के लिए करीब चार दशक से कोई नई दवा बाजार में नहीं आई है। इससे न सिर्फ मरीजों की परेशानी, बल्कि चिकित्सकों की चुनौती भी बढ़ गई है। बीमारी को लेकर चल रहे शोधों को देखते हुए चिकित्सकों और विशेषज्ञों ने तीन से चार वर्ष में टीबी की नई असरकारक दवा बाजार में उपलब्ध होने की उम्मीद जताई है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के...

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गोपनीयता की आड़ में- जोगिन्दर सिंह

एक तरह से देखें तो भारत की सभी सरकारों का रवैया छिपाऊ रहा है। केवल रक्षा मामले में ही नहीं, विवादों, घोटालों, धोखाधड़ी या पक्षपात करने में अपनी निरंकुश ताकत का बेजा इस्तमाल करने से जुड़े सभी मामलों सरकारों का यह रुख साफ दिखता है। बेशक संविधान अभिव्यक्ति की आजादी की गारंटी देता है, लेकिन इस पर मानहानि से जुड़े कानून का बंधन भी है। एक संपादक ने मुझे बताया कि उसके अखबार...

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इस बार के चुनाव में खेती-किसानी मुद्दा क्यों नहीं है- हरवीर सिंह

इंदिरा गांधी के इमरजेंसी राज के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जिस जनता पार्टी ने सत्ता से बेदखल किया, उसका चुनाव चिह्न हलधर था। उस चुनाव का एक नारा था, देश की खुशहाली का रास्ता खेतों और गांवों से होकर जाता है। साफ है कि तब राजनीति के केंद्र में किसान और गांव-देहात था। अब सोलहवीं लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। इस चुनाव में मध्यवर्ग,...

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यह खुशहाली का रास्ता नहीं है- सीताराम येचुरी

भारतीय उद्योग जगत के एक हिस्से ने तो जोश के सारे रिकॉर्ड ही तोड़ दिए हैं। उद्योग जगत का यह जोश दहशत पैदा करने वाले तरीके से याद दिलाता है कि किस तरह पूंजीपति वर्ग के एक हिस्से ने 1930 के दशक में जर्मनी में हिटलर के उभार में मदद की थी। आज जब साल 2008 की आर्थिक मंदी के बाद से विश्व पूंजीवाद का संकट लगातार बना हुआ है,...

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जंगल के असल दावेदार- विनय सुल्तान

जनसत्ता 19 मार्च, 2014 : पिछले साल की दो घटनाएं इस देश में जल, जंगल और जमीन की तमाम लड़ाइयों पर लंबा और गहरा असर छोड़ेंगी। पहली घटना दिल्ली से दो हजार किलोमीटर की दूरी पर स्थित नियमगिरि की है। यहां ग्रामसभाओं ने एक सुर में अपनी जमीन ‘वेदांता’ के हवाले करने से इनकार कर दिया। इसके बाद वेदांता कंपनी को नियमगिरि छोड़ना पड़ा। नियमगिरि जल, जंगल और जमीन की...

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