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कब चमकेगी आदिवासियों की किस्मत!

नई दिल्ली [भारत डोगरा]। भारतीय संविधान ने आदिवासी समुदायों की विशेष आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशीलता का परिचय दिया और संविधान की इस भावना के अनुकूल हमारे देश में आदिवासी हितों की रक्षा के अनेक कानून भी बनाए गए, लेकिन इसके बावजूद जमीनी स्तर की वास्तविकता यह रही कि आदिवासियों को कई तरह का अन्याय सहना पड़ा। बड़े पैमाने पर वे जमीन से वंचित हुए व उनकी वन-आधारित आजीविका भी अधिकाश स्थानों पर तेजी से कम होती...

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कल तक खाने के थे लाले, आज बांट रहे रोटी

भागलपुर, [रूप कुमार]। कहा जाता है कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। इसे सार्थक कर दिखाया है गंगा पार के एक किसान पिता-पुत्र ने। पिता-पुत्र आज अपनी एक बीघा जमीन पर नर्सरी के जरिए हर रोज हजार रुपये की कमाई कर रहे हैं। कल तक इस किसान परिवार को रोटी के लाले थे, वहीं आज कई परिवार के बीच रोटी बांट रहे हैं। यशस्वी बने इस किसान का नाम है दीपनारायण...

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सिस्टम के गोडसों के लिए गोली है गांधी ग्राम

मुजफ्फरपुर [अमरेन्द्र तिवारी]। एक गांव ऐसा जहां चलती है 'अपनी' सत्ता। मोतीपुर प्रखंड में कुष्ठ रोगियों की बस्ती 'गांधी ग्राम' के लोगों ने अपने अधिकार की प्राप्ति तथा आपसी विवाद के निपटारे के लिए अपना मुखिया, सरपंच तथा पंच चुन लिया है। यह चुनाव भी पांच साल के लिए है। आपस का कोई मामला हो, सभी मिलकर सलटाते हैं। कुष्ठ रोगियों तथा उनके परिजनों का यह प्रयास जिले में एक अलग माडल बना हुआ है। ...

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खूबसूरत दिल्ली की बदरंग हकीकत

नई दिल्ली [श्रीपाल जैन]। अक्टूबर 2010 में कामनवेल्थ गेम्स के आयोजन की कामयाबी के लिए दिल्ली और केंद्र सरकार सिंगापुर और पेरिस की तर्ज पर दिल्ली को विश्वस्तरीय शहर बनाने में जुटी हुई हैं। जगह-जगह फ्लाई ओवर, सब-वे, फुट ब्रिज, जल निकासी लाइन, पार्किग स्थल, मेट्रो लाइन, सड़कों को चौड़ा एवं बेहतर बनाने के कार्य युद्धस्तर पर चल रहे हैं। इससे दिल्ली के आम बाशिंदों को बेहतर बुनियादी सुविधाएं...

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बेरोजगारी निगल गई 350 बरस पुराना गांव

शामली [मुजफ्फरनगर, राजपाल पारवा], मैं हूं गांव कोठड़ा..। एक समय मेरी आबादी 500 के करीब थी। रोजगार के अभाव में दो साल पूर्व मेरा अस्तित्व समाप्त हो गया। शेष रह गया तो सिर्फ 350 वर्षो का इतिहास। ..लेकिन आज भी मेरे बरगद की शीतल छांव में मुसाफिर अपनी थकान मिटाते हैं। सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पीर आज भी मेरे वजूद का गवाह है। अगर नहीं हैं तो यहां के बाशिंदे। मेरठ-करनाल...

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