अरसा पहले एक गीत में एक बच्चा अपनी मां से कहता था कि वह गोली चलाना सीखेगा, क्योंकि उसे लीडर नहीं, फौजी अफसर बनना है! कई बार इस गीत को युवा पीढ़ी के अराजनीतिकरण की ‘गर्हित' कोशिशों से भी जोड़ा जाता था। लेकिन अब कोई टॉपर फौजी अफसर बनने की इच्छा भी नहीं दर्शाता। अगर कभी उसके सपनों में समाज सेवा शामिल होती है तो वह एनजीओ है जिसमें बदले...
More »SEARCH RESULT
प्रेस की आजादी और हमारा रिकॉर्ड-- रामचंद्र गुहा
मैं 1988 के पूर्वार्द्ध में उत्तराखंड में शोध कर रहा था, जब उसी क्षेत्र में एक बहादुर नौजवान पत्रकार की हत्या की खबर आई। उसका नाम उमेश डोभाल था। उसने शराब माफिया, पुलिस, आबकारी विभाग व स्थानीय राजनेताओं की सांठगांठ का पर्दाफाश किया था। उसे शराब ठेकेदारों के भाड़े के हत्यारों ने मारा था। 1988 के उत्तरार्द्ध में मैं दिल्ली में रह रहा था, जब लोकसभा द्वारा प्रेस की आजादी को...
More »दिव्यांग आवास में 49 बच्चों के बीच एक टूथब्रश
नई दिल्ली। सरकारी सहायता से दिव्यांग बच्चों के लिए चलाए जाने वाले घर में 49 बच्चे सिर्फ एक ही टूथब्रश का इस्तेमाल करते हैं। ये तथ्य किसी संगठन ने नहीं बल्कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एच एल दत्तू ने सामने रखा है। जस्टिस दत्तू के मुताबिक दो साल पहले उन्होंने इस तरह का मंजर देखा था। जस्टिस दत्तू ने अंग्रेजी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में...
More »माना कि अच्छे दिन अभी नहीं आए हैं...- तवलीन सिंह
इस लेख को लिखते हुए मुझे दुख होता है, लेकिन लिखना जरूरी है, क्योंकि जिस तरह अरुण शौरी ने पिछले सप्ताह मोदी सरकार की आलोचना की, वह मुझे निजी तौर पर बुरा लगा। मैंने जब से पत्रकारिता की दुनिया में पहला कदम रखा, तब से मैं शौरी साहिब का सम्मान करती आई हूं। संयोग से मुझे अखबार में पहली नौकरी इमरजेंसी लगने से एक महीना पहले मिली थी। उस दौर...
More »भुखमरी क्यों न हो जब कैदी को रोज 700 ग्राम आटा मिले और गरीब को पाव भर भी नहीं- विनय सुल्तान
हर शहर की अपनी अलग तासीर होती है. इसके बावजूद हर शहर एक तरह से ही उठता है. बिल्कुल इंसान की तरह ही. मंदिर में घंटों की आवाज और अजान के बीच थोड़ा अलसाया सा. ललितपुर में भी छह मई की सुबह ऐसी ही रही होगी. चाय की गुमटियों पर अखबार ताजा से बासी हो जाने की सनातन यात्रा के बीच कस्बे के कृष्णा सिनेमा के पास से गुजरते लोग अचानक...
More »