जनसत्ता 17 फरवरी, 2014 : विश्व बैंक की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीना लेगार्ड ने हाल ही में यह रहस्योद्घाटन किया कि भारत के अरबपतियों की दौलत पिछले पंद्रह बरस में बढ़ कर बारह गुना हो गई है। क्रिस्टीना के अनुसार, इन मुट्ठी भर अमीरों के पास इतना पैसा है जिससे पूरे देश की गरीबी को एक नहीं, दो बार मिटाया जा सकता है। लेगार्ड के इस बयान से पुष्टि होती है...
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चुनाव बाद सिरे चढ़ेंगी विकास दर की चिंताएं- जयंतीलाल भंडारी
यह बजट से पहली आई खराब खबर है। केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन के अग्रिम अनुमानों में बताया गया है कि वित्त वर्ष 2013-14 में आर्थिक विकास दर 4.9 प्रतिशत रहने की आशंका है। वैसे यह विकास दर पिछले वित्त वर्ष में दर्ज की गई 4.5 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर से ज्यादा है, लेकिन इसके बावजूद यह निराशाजनक इसलिए है, क्योंकि वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने पिछले साल आम बजट पेश...
More »कटते जंगल किसका मंगल- मुस्कान
जनसत्ता 8 फरवरी, 2014 : विकास के पूंजीवादी-नवउदारवादी मॉडल की कुछ खास तरह की जरूरतें होती हैं। या कहें कि यह मॉडल आर्थिक संवृद्धि के एवज में कुछ खास बलिदानों की मांग करता है। हम देखते हैं कि भारत सरीखे अधिकतर विकासशील देश इन बलिदानों के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। अब सवाल है कि विकास की प्रचलित अवधारणा किन बलिदानों की मांग करती है? और ये बलि के बकरे...
More »गालिब! गुजरात का ख्याल अच्छा है- चंदन श्रीवास्तव
मिर्जा गालिब को लगता था कि जन्नत, एक ख्याल ही सही मगर दिल को बहलाये रखने के लिहाज से ‘यह ख्याल अच्छा है’. वैसे, ऐसा कहते हुए उनके दिल में कोई कांटा जरूर चुभता रहा होगा. तभी उन्होंने अपने मशहूर शे’र में जन्नत से दोहरा बदला लिया. एक तो उसे महज ख्याल भर बताया और साथ में यह भी जोड़ दिया कि- सबको मालूम है जन्नत की हकीकत.. यहां गालिब की बात...
More »पूरी दुनिया में बढ़ रही है विलय एवं अधिग्रहण की भूख
उम्मीद : नकदी से लबालब कंपनियों में बढ़ा है भरोसा, सेंटिमेंट में सुधार से इस साल हो सकते हैं ज्यादा सौदे स्थिरता से फायदा विश्लेषकों का कहना है कि कंपनियों का आत्मविश्वास बढ़ा है जिसकी वजह से इस साल वे पिछले साल के मुकाबले ज्यादा सौदे करने की क्षमता रखती हैं निवेशकों ने पिछले तीन-चार साल से धैर्य बनाए रखा है, लेकिन अब सौदे करने...
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