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शिक्षा के 'उद्योग' में फीस नियंत्रण की रस्म अदायगी!

देशभर में आए दिन सामने आने वाले विवादों-मुद्दों में कम ही ऐसा होता है, जिस पर सभी एकमत हों! अपवाद का ऐसा ही एक आधार है-निजी स्कूलों की बेलगाम फीस। सभी एकमत हैं कि फीस बहुत ज्यादा है और इस पर नियंत्रण होना ही चाहिए। निजी स्कूलों की स्थिति समझने के लिए सबसे पहले कुछ संदर्भ। वर्ष 2010-11 से 2015-16 के बीच 20 राज्यों के सरकारी स्कूलों में 1 करोड़...

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नकली दवा का दर्द-- बाल मुकुंद ओझा

घटिया और नकली चिकित्सीय उत्पादों का बाजार, प्रभावी नियंत्रण के अभाव में, लगातार बढ़ रहा है। मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहे इसके खतरनाक प्रभाव को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में एक बेहद चौंकाने वाली रिपोर्ट जारी की है। भारत सहित अट्ठासी देशों में किए गए अध्ययन पर आधारित इस रिपोर्ट में कई ऐसे मामलों का ब्योरा है जिनमें घटिया और नकली दवाओं के कारण सैकड़ों मरीजों की...

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बीमार हुआ भरोसा, करना होगा 'उपचार" - डॉ सचिन चित्‍तावर

हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि हम ऐसे देश में रह रहे हैं, जहां हमें बहुत ही सस्ता, मगर गुणवत्तापूर्ण इलाज उपलब्ध है। दुनिया के विकसित देशों में भी इतनी बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। भारतीय चिकित्सकों की गुणवत्ता और भरोसे के कारण ही दुनियाभर से मरीज भारत आकर इलाज कराना पसंद करते हैं। मगर कैसी हैरत की बात है कि भारत में ही डॉक्टरों पर सबसे...

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क्यों बंद हो रहे सरकारी स्कूल--- कौशलेन्द्र प्रपन्न

एक सरकारी स्कूल का बंद होना क्या मायने रखता है इसका अनुमान शायद हम आज न लगा सकें। संभव है इसका खमियाजा समाज को दस-बीस बरस बाद भुगतना पड़े। एक ओर विकास के डंके बज रहे हैं वहीं दूसरी ओर आम बच्चों से उनकी बुनियादी शिक्षा की उम्मीद यानी सरकारी स्कूल तक छीने जा रहे हैं। हमने 2000 में सहस्राब्दी विकास लक्ष्य तय किया था। उसमें 2010 तक सभी बच्चों...

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पढ़ाई का परिदृश्य-- कालू राम शर्मा

हम आज भी मैकाले को खलनायक के रूप में याद करते नहीं थकते हैं। अंगेजों के राज में एक खास प्रकार की शिक्षा-व्यवस्था रची गई थी, जो तब अंग्रेजी राज की जरूरतों के मुताबिक थी। आजादी पाने के पहले ही गांधीजी उस शिक्षा-व्यवस्था से न केवल व्यथित थे, बल्कि उनमें एक आक्रोश था और इसका उन्होेंने हल भी खोजा कि शिक्षा ऐसी हो जो देश की सामाजिक स्थिति और यहां...

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