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मातृत्व पर गहराता संकट

नई दिल्ली [अरविंद जयतिलक]। बेशक देश में महिलाएं सफलता का इतिहास रच रही हैं। अपने बुलंद हौसले से उन कार्यो को भी अंजाम तक पहुंचा रही हैं, जो सदियों से उनके लिए असंभव बताया जाता रहा है। बात चाहे देश में सरकार को नेतृत्व देने का हो अथवा सेवा क्षेत्र में मिसाल कायम करने की, आज वह हर कहीं पुरुषों से कंधा मिला रही हैं, लेकिन इन सबके बावजूद दुखद स्थिति यह है कि बुनियादी स्वास्थ्य...

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बढ़ती गरीबी का सबब-- देविंदर शर्मा

अर्थव्यवस्था के विकास में कुछ भयावह गड़बड़ी है. भारत आर्थिक उदारीकरण के 18 साल बाद बेहतर स्थिति में नजर आ रहा है, लेकिन ऊंचे विकास के बल पर गरीबी हटाने और भुखमरी मिटाने के वायदे पूरे नहीं हो पाए हैं. वास्तव में, गरीबी और विषमता घटने के बजाय और बढ़ गई है. आर्थिक विकास जितना बढ़ रहा है उतनी ही गरीबी भी बढ़ रही है. गरीब प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के...

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रोटी को तरसते लोग, गोदामों में सड़ते अनाज

नई दिल्ली [उमा श्रीराम]। करीब 70 वर्ष पहले चर्चित कवि सुब्रमण्यम भारती ने यह कहकर हलचल मचा दी थी कि यदि दुनिया में एक भी आदमी भूखा है तो इस विश्व को ही नष्ट कर दो। भारती जी ने तभी भारत की आजादी को देख लिया था और उन्होंने आधुनिक भारत, युवा वर्ग व महिलाओं को समर्पित करते हुए कई कविताएं रच डाली थी। पर दुर्भाग्य से वे यह कल्पना भी नहीं कर सके...

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बुद्धि की मंदी है : मुद्दों का न होना- पी साईनाथ

कम-से-कम दो प्रमुख अखबारों ने अपने डेस्कों को सूचित किया कि 'मंदी' (recession) शब्द भारत के संदर्भ में प्रयुक्त नहीं होगा। मंदी कुछ ऐसी चीज है, जो अमेरिका में घटती है, यहां नहीं. यह शब्द संपादकीय शब्दकोश से निर्वासित पडा रहा. यदि एक अधिक विनाशकारी स्थिति का संकेत देना हो तो 'डाउनटर्न' (गिरावट) या 'स्लोडाउन' (ठहराव) काफी होंगे और इन्हें थोडे विवेक से इस्तेमाल किया जाना है. लेकिन मंदी को नहीं. यह मीडिया के दर्शकों के...

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भूखे बुंदेलों के हक पर अमीरों का डाका

उरई। बुंदेलखंड के बीहड़ में बसे गांवों के लोग भुखमरी के मुहाने पर खडे़ हैं। उरई जिले के नंदीगांव व रामपुरा ब्लाकों के दर्जनों गांवों के बाशिंदों के घरों में महीने में बमुश्किल 15 दिन ही चूल्हा जलता है और वह भी एक समय। ज्यादातर भूमिहीन और गरीबों के पास बीपीएल और अंत्योदय कार्ड तक नहीं हैं। पूरा भोजन ना मिलने से महिलाएं, पुरुष और बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। दलित बाहुल्य गांवों की हालत...

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