नई दिल्ली, अंशुमान तिवारी; वित्तीय दुनिया चाहे जितनी पेंचदार हो, मगर यह हमेशा से एक अलिखित और व्यावहारिक भरोसे पर ही चलती है। रुपये अदा करने का वचन देने वाली कागजी मुद्रा (प्रॉमिसरी नोट) से लेकर अरबों डॉलर के बाडों और शेयरों तक फैला यही भरोसा अब दरकने लगा है। बात लीमन ब्रदर्स या बेरिंग्स नाम के बैंक अथवा एनरॉन या सत्यम जैसी कंपनी से भरोसा उठने की है ही...
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विकासशील देशों का हो ध्यान - जोसफ़ इ स्टिग्लिज
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को नया मैनेजिंग डायरेक्टर उम्मीद से पहले मिल जायेगा. मैं पिछले एक दशक से इस संगठन के गवर्नेस की आलोचना करता रहा हूं. जिस प्रकार इसके प्रमुख का चुनाव होता है, वह संगठन की खामियों को दर्शाता है. संगठन के प्रमुख शेयर धारकों (जी-8) के बीच सहमति है कि आइएमएफ़ का मैनेजिंग डायरेक्टर यूरोपियन, नंबर दो अमेरिकन और विश्व बैंक का प्रमुख भी वही होगा. विकासशील देशों से सिर्फ़ दिखावे...
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