रांचीः आ मतौर पर लोग विपरीत परिस्थितियों में काम करते हैं, तो सिर्फ उन परिस्थितियों को कोस कर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं. उस माहौल या परिस्थिति को बदलने के लिए कुछ नहीं करते. लेकिन कुछ लोग होते हैं, जो मुश्किल हालातों को बदल डालते हैं. ऐसे ही कई लोग जीवन में सफल होते हैं. ऐसे ही लोगों में शामिल हैं अजयिता शाह व उनके सहयोगी डेनियल...
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सुधार पर हावी सियासत : केविन रैफर्टी
मेरे पुराने मित्र मनमोहन सिंह इस वक्त आखिर क्या सोच रहे होंगे? क्या अब समय आ गया है कि वे भारत के प्रधानमंत्री पद के दायित्व से मुक्त हो जाएं और 40 वर्षो की शीर्षस्तरीय लोकसेवा के बाद रिटायरमेंट ले लें? या क्या उन्हें और सोनिया गांधी के कांग्रेस-नीत गठबंधन को इस उम्मीद में मध्यावधि चुनाव करा लेना चाहिए कि शायद युवा राजनेता सामने आएं और अपने ताजगीभरे विचारों के साथ भारत...
More »विकास का सही सूचक-अनिल प्रकाश जोशी
विश्व भर में आज की सबसे बड़ी पर्यावरणीय चर्चा का अहम हिस्सा विकसित एवं विकासशील देशों की बढ़ती सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की दर पर केंद्रित है। बेहतर जीडीपी का सीधा संबंध उद्योगों की अप्रत्याशित वृद्धि के साथ ही बढ़ती ऊर्जा की खपत से है, जिसका पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ा है। ऐसे विकास का सीधा प्रभाव आदमी की जीवनशैली पर पड़ता है। कार, एसी व अन्य वस्तुएं ऊर्जा की...
More »धरती कहे पुकार के
ढ़ती हुई कीमतें उस आपदा का सिर्फ एक संकेत हैं, जिससे खेती जूझ रही है. दरअसल भारतीय कृषि क्षेत्र बुरी तरह से चरमरा रहा है. संकट से पार पाने के लिए नजरिए में बड़े बदलावों की जरूरत है. लेकिन कृषि मंत्री शरद पवार आपदा की इस आहट को सुनने के लिए तैयार नहीं. अजित साही और राना अय्यूब की रिपोर्ट सरकारी नीतियों से लेकर अखबार की सुर्खियों तक तरजीह पाने वाली...
More »कितनी जायज मदद की मांग
देश की दवा कंपनियों के एक बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था इंडियन फार्मास्युटिकल्स एलायंस ने असामान्य कदम के तहत सरकार से उद्योग को सहायता देने की मांग की है। उद्योग इस समय भारतीय कंपनियों के विदेशी अधिग्रहण से जूझ रहा है। इनमें से कोई भी अधिग्रहण जबरन नहीं है। तो ऐसे में सरकार कहां से आती है, खासकर तब जबकि सुरक्षा कोई मुद्दा नहीं है? यह भी साफ...
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