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किसानों के आन्दोलन के छः महीने : इस सरकार में अंग्रेजों जितनी शर्म भी नहीं

-द प्रिंट, केन्द्र सरकार के तीन विवादित कृषि कानूनों को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के लिए कानून बनाने की मांगों को लेकर राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर जारी किसानों का आन्दोलन छब्बीस मई को छः महीने पुराना हो जायेगा. सरकार की हर चन्द कोशिश के बावजूद इस दौरान किसान न थकने को तैयार हैं, न झुकने को. बदलते मौसमों के साथ गर्मी, जाड़ा व बरसात और महामारी के...

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नई ILO रिपोर्ट: टेक्नोलॉजी आधारित नए डिजिटल श्रम प्लेटफार्म श्रमिकों के अधिकारों की अनदेखी कर रहे हैं!

वेबआधारित और प्लेटफॉर्म श्रमिकों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएं हम में से हर एक के जीवन को प्रभावित करती हैं, लेकिन श्रम क्षेत्र को बदलने में डिजिटल श्रम प्लेटफार्मों की भूमिका के बारे में ऐसी जानकारियां बहुत कम है. ऐसे डिजिटल श्रम प्लेटफार्मों ने श्रमिकों, व्यवसायों और समाज के लिए अभूतपूर्व अवसर पैदा किए हैं. हालांकि, ये डिजिटल प्लेटफॉर्म उचित काम और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा के लिए गंभीर खतरे भी पैदा...

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मध्य प्रदेश में किसान महापंचायतों की लहर, कटाई के मौसम में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे ग्रामीण

-कारवां, 5 फरवरी को केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र तोमर ने राज्यसभा में कहा कि कृषि कानूनों को लेकर जारी विरोध केवल एक राज्य तक सीमित है और इसके लिए किसानों को उकसाया जा रहा है. वहीं खुद उनके गृह-राज्य मध्य प्रदेश में किसान महापंचायतों का सिलसिला जोर पकड़ता जा रहा है. इसकी शुरुआत भी तोमर के ही संसदीय क्षेत्र मुरैना-श्योपुर से हुई जहां बीती 13 फरवरी को सबलगढ़ में...

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पड़ताल: एमएसपी पर सरकार बनाम किसान, कौन किस सीमा तक सही?

-न्यूजक्लिक, नए कृषि क़ानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन के मोर्चे पर एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) को लेकर किसान और सरकार आमने-सामने हैं। एमएसपी के निर्धारण और उसके आधार पर फ़सलों को ख़रीदने की सुनिश्चितता को लेकर इन दिनों एक लंबी बहस चल रही है। लेकिन, इस पूरी बहस के परिपेक्ष्य में कई ऐसे बिंदू छूट रहे हैं जिन पर किसानों को संदेह बढ़ता जा रहा है और इसलिए वे...

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छत्तीसगढ़ में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में बड़े किसानों के साथ आए खेत मजदूर

-कारवां, “मनरेगा में हमें यह सरकार अब मुश्किल से बीस दिन ही काम दे रही है. जब हमने मनरेगा में काम करना शुरू किया था तो किसी साल 50-60, तो किसी साल 80 दिनों तक हमें अपने गांव में ही काम मिल जाता था. पर, हमें तो अपना गुजारा करने के लिए साल के सभी दिन काम चाहिए न. इसलिए, कुछ दिन हम अपने खेत और कुछ दिन बड़े किसानों के खेतों...

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