देवयानी खोबरागड़े के नाम से पूरा देश परिचित हो गया है। अमेरिकी सरकार की बदतमीजी की भर्त्सना संसद से लेकर चौराहे तक हुई है। दूसरे देशों के प्रतिनिधियों का हवाई अड्डों पर अपमान करना, दूसरे मुल्कों में घुसकर वहां के ऐसे नागरिकों का अपहरण कर लेना, जिन्हें वे अपने लिए खतरनाक मानते हैं, दूसरे देशों के सामान्य नागरिकों पर ड्रोन हमले कर जान लेना, पूरी दुनिया के नेताओं और नागरिकों...
More »SEARCH RESULT
झारखंड की अखंड लूट-विनोद कुमार
जनसत्ता 15 नवंबर, 2013 : तेरह साल पहले झारखंड राज्य का गठन हुआ था। झारखंड आंदोलन की काट में वनांचल आंदोलन खड़ा करने वाली भाजपा ने झारखंड राज्य का गठन क्यों किया, इसको लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं। कुछ लोगों का मानना है कि अविभाजित बिहार की सत्ता पर काबिज होने की कोशिशों में विफल होने के बाद भाजपा ने अपने प्रभाव वाले इलाके की सत्ता पर काबिज होने की मंशा...
More »आज के संदर्भ में ग्राम-स्वराज- भारत डोगरा
जनसत्ता 2 अक्तूबर, 2013 : गांधीजी ने ग्राम स्वराज्य का सपना देखा था। लेकिन आजादी मिलने के बाद जो विकास नीति अपनाई गई, उसमें इस सपने के लिए कोई जगह नहीं थी। इसीलिए ग्रामीण इलाकों से शहरों की तरफ पलायन हमारे नीति नियंताओं को कभी चुभा नहीं। सकल राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र की घटती हिस्सेदारी भी उन्हें चिंतित नहीं करती। भारत के गांवों में आजादी के बाद कैसा बदलाव हुआ? इतने...
More »महान लोकतंत्र की सौतेली संतानें- अतुल चौरसिया
नर्मदा और टिहरी की जो वर्तमान त्रासदी है उत्तर प्रदेश का सोनभद्र जिला उससे आधी सदी पूर्व ही गुजर चुका है. लेकिन इसका दुर्भाग्य कि नर्मदा, टिहरी के मुकाबले विनाश के कई गुना ज्यादा करीब होने के बावजूद यह आज कहीं मुद्दा ही नहीं है. शायद इसलिए कि सोनभद्र के पास कोई मेधा पाटकर या सुंदरलाल बहुगुणा नहीं हैं. अतुल चौरसिया की रिपोर्ट. फोटो: शैलेंद्र पांडेय. सोनभद्र को देखकर पहली नजर...
More »जाति की जटिलताएं- योगेश अटल
जनसत्ता 19 अप्रैल, 2013: पिछले कुछ दिनोंसे यात्रा पर हूं और जिस शहर में गया वहां उत्सुकतापूर्वक मैंने हिंदी के अखबार पढेÞ, ताकि जान सकूं कि उनमें किस तरह की खबरें छपती हैं। किसी भी दिन कोई ऐसा अखबार नहीं मिला, जिसमें जाति के विषय में खबर न छपी हो। जाति का सम्मलेन, जाति की प्रतिभाओं का सम्मान, जाति के किसी समारोह में प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति, जबकि...
More »