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क्या हैं अमीर व गरीब देशों के लिए प्राकृतिक संपदा के मायने?

-डाउन टू अर्थ, जिस समय दुनिया वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने के लिए ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन फॉर क्लाइमेट चेंज के बैनर तले कॉप-26 में कार्बन बजट पर चर्चा करने में व्यस्त थी, ठीक उसी समय एक अन्य मोर्चे पर एक और महत्वपूर्ण बहस चल रही थी। इस बहस के केंद्र में था कि क्या हम प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध उपयोग को नियंत्रित कर सकते हैं? यह बहस उस उपभोग...

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डोभाल और रावत के हालिया बयानों में देश को पुलिसिया राज में तब्दील करने की मंशा छिपी है

-द वायर, सरकार के कदम जब शासन के संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप नहीं होते हैं, तब आप क्या करते हैं? आप अपने हिसाब से एक नया सिद्धांत गढ़ लेते हैं. पिछले हफ्ते हमने देखा कि किस तरह से नरेंद्र मोदी सरकार के दो बड़े स्तंभ- राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और डिफेंस स्टाफ प्रमुख जनरल बिपिन रावत- ने व्यापक राष्ट्रहित के नाम पर कानून के शासन के उल्लंघन को जायज ठहराने के...

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महामारी से कितनी प्रभावित हुई दलित-आदिवासी शिक्षा?

-न्यूजक्लिक, पिछले दो सालों में कोरोना महामारी ने अन्य व्यवस्थाओं के साथ शिक्षा व्यवस्था को भी अस्त-व्यस्त कर दिया। सुखद है कि अब धीरे-धीरे शिक्षा व्यवस्था पटरी पर लौटने लगी है। महामारी ने यूं तो सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों को भी प्रभावित किया पर दलित-आदिवासी छात्र-छात्राओं का तो भविष्य ही दांव पर लग गया। इसमें हमारी जातिवादी और पितृसत्तावादी मानसिकता और उभर कर सामने आई। हाल ही में दलित आर्थिक अधिकार...

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खून और स्याही

-द कारवां, वह मेरे जीवन का सबसे वीभत्स दृश्य था. दिल्ली पुलिस के सब्जी मंडी स्थित मुर्दाघर में मैंने जो मंजर देखा वह ऐसा था कि मेरे साथी पत्रकार दीपांकर डे सरकार उल्टियां करने लगे थे. वह 1 नवंबर 1984 का दिन था और इंदिरा गांधी को उनके सिख सुरक्षागार्डों द्वारा गोली मारे जाने के 24 घंटे हुए थे. भयानक हिंसा में निर्दोष सिखों को निशाना बनाया जा रहा था. यह मध्यकालीन न्याय...

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आर्यन -वानखेड़े प्रकरण के बाद IPS-IRS-IAS खुद से सवाल पूछें कि अपनी शपथ को लेकर वो कितने ईमानदार हैं

-द प्रिंट, जब तक आप यह लेख पढ़ रहे होंगे, आर्यन खान शायद जेल से बाहर निकल रहे होंगे- बेशक 25 दिन की देरी से. इस मामले के बारे में अब तक हम जो कुछ जान पाए हैं वे यही बताते हैं कि उनकी गिरफ्तारी, उन्हें जेल में रखना और उन पर एक कठोर कानून के तहत मामला दायर करना कतई जायज नहीं था. उनके कड़वे प्रकरण ने समीर दाऊद/ज्ञानदेव वानखेड़े...

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