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लॉकडाउन से उपजे पेट के संकट ने महामारी के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया

-न्यूजक्लिक,  ‘मोर बस्ती कोरोना से ज्यादा खतरनाक है। वहां बहुत कचड़ा और गंध है, आप बस्ती जाएंगे तो आपको भी कोरोना हो जाएगा।’ ये कहना है नंदू का। नंदू जिसने शहर इलाहाबाद में यमुना नदी के तट पर अपने जिंदगी की पहली सांस ली थी। वह आज भी यमुना नदी के किनारे बसे कीडगंज इलाके की एक बस्ती में रहता है, नंदू की उम्र कुल जमा आठ साल है लेकिन नंदू...

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कोरोना से निपटने के लिए सरकार ने ईमानदार कोशिश नहीं की

-द वायर, दो महीने के कड़े लॉकडाउन के बावजूद भी आज कोरोना वायरस संक्रमण का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है. लॉकडाउन के दौरान सरकार ने चिकित्सा व्यवस्था में सुधार के कोई प्रयास नहीं किए. इसका नतीजा है कि हर तीन में से दो जिलों के पास आज भी कोरोना जांच का इंतजाम नहीं है. राजधानी दिल्ली के अस्पतालों में भी लोग बेड के अभाव में मर रहे हैं. मजदूरों को अमानवीय क्वारंटीन...

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लाख दावों के बावजूद 45 डिग्री की झुलसाती गर्मी में रह रहे प्रवासी मजदूर

-न्यूजलॉन्ड्री,  17 मई, 2020 को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के एक ट्वीट पर रिप्लाई करते हुए लिखा, “दिल्ली में रह रहे प्रवासी मजदूरों की जिम्मेदारी हमारी है. अगर वो दिल्ली में रहना चाहते हैं तो उनका पूरा ख़्याल रखेंगे और अगर वो अपने गांव लौटना चाहते हैं तो उनके लिए ट्रेन का इंतजाम कर रहे हैं. किसी भी हालत में उन्हें बेसहारा नहीं छोड़ेंगे.” क्या दिल्ली सरकार...

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मजदूरों की घर वापसी से बिहार में शुरू हो सकता है ज़मीन का ख़ूनी संघर्ष

-न्यूजलॉन्ड्री, जून 2019 की एक दोपहर बिहार के बांका जिले के चांदपुर गांव की रहने वाली 25 वर्षीय पूनम दिल्ली के प्रेस क्लब में अपनी दो साल की बेटी को लेकर खड़ी थीं. बेटी के शरीर पर कई दाग निकले हुए थे. उस दिन बंधुआ मजदूरों को छुड़ाने वाले एक स्वयंसेवी संगठन की प्रेस कांफ्रेंस थी. पूनम खुद एक बंधुआ मजदूर थी, लेकिन मजदूरों को वहां से निकालने में उनकी बड़ी...

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क्यों यह सबसे मुनासिब वक्त है एक राष्ट्रीय सरकार के गठन का

-न्यूजलॉन्ड्री, सरकार बनाने के लिए वर्तमान में बहुमत का क्या मतलब है. पहला कि सत्ताधारी दल को कभी भी कुल आबादी का बहुमत नहीं होता है. चुनाव में कुल मतदान में सबसे ज्यादा मत हासिल करने के कारण उसे बहुमत मान लिया जाता है. संसदीय लोकतंत्र में बहुमत एक विज्ञापन की तरह होता है. वास्तविकता से उसका बहुत दूर का रिश्ता होता है. मसलन 1952 के पहले चुनाव में केवल 17,32,13,635 मतदाता...

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