लखनऊ में बीते दिनों विवेक तिवारी की हत्या क्या एक बड़े प्रदेश में अपवाद स्वरूप कभी-कभार होने वाली असाधारण, किंतु जिसकी वजह से बहुत अधिक परेशान न हुआ जाए, ऐसी घटना थी? ऐसा तो नहीं कि यह शरीर में बहुत दिनों से पक रहा कोई ऐसा फोड़ा था, जो बीच-बीच में फूटता था, लेकिन हम उसे थोड़ा-बहुत पोंछ-पांछकर खुद को साफ-सुथरा महसूस करने लगते थे। पर इस बार तो यह...
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एक अध्यापक जो समाज के लिए था- विभूति नारायण राय
महात्मा गांधी को याद करते हुए आइंस्टीन ने कहा था कि आने वाली नस्लों को यह विश्वास ही नहीं होगा कि उनके जैसा हाड़-मांस का कोई पुतला भी पृथ्वी नामक ग्रह पर कभी रहा होगा। महामानव का असाधारण होना बहुत अस्वाभाविक नहीं है, वे तो महामानव बनते ही अपने भीतर-बाहर की असाधारणता के कारण हैं। कई बार हमारा साबका किसी ऐसे साधारण मनुष्य से पड़ता है, जो अपने भीतर मनुष्य...
More »जड़ों से कटा आधारहीन वर्ग--पवन के वर्मा
एक ब्लॉगिंग साइट को दिये एक इंटरव्यू में मैंने यह कहा कि लुटियन (नयी दिल्ली का अंग्रेजों द्वारा निर्मित हिस्सा) का उच्च वर्ग चतुर्दिक जल से घिरे द्वीपों की तरह जड़ एवं आधार से रहित है, जिसकी पहचान सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी ही है. इसके पक्ष और विपक्ष में बड़ी तादाद में टिप्पणियां आयीं. इसलिए मैंने यह महसूस किया कि मुझे अपनी बात का आशय कुछ और विस्तार से प्रकट...
More »नये बिहार की चुनौतियां!-- केसी त्यागी
हार उपचुनाव के नतीजे और रामनवमी के बाद के घटनाक्रमों को लेकर मीडिया के एक तबके के साथ कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा बिहार सरकार की आलोचना सुर्खियों में रहीं. इस क्रम में स्थानीय शासन-प्रशासन की तथाकथित विफलता को भी खूब स्थान दिया गया, जिसमें राज्य के कुछ जिलों में हुई सांप्रदायिक झड़पों को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सुशासन व्यवस्था पर भी सवाल उठाये गये. किसी भी शासनाध्यक्ष के लिए ऐसी...
More »तंग नज़रिये के प्रतीकों का पोषण-- एस निहाल सिंह
फिल्म पद्मावती को लेकर छिड़ा विवाद एक बड़ी समस्या की ओर इशारा करता है। केंद्र में 2014 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद से अभिव्यक्ति की आजादी तथा अपने अंदाज़ में ज़िंदगी जीने के लिए जगह सिकुड़ती जा रही है। दूसरा, सार्वजनिक बातचीत में सतहीपन आ गया है, जबकि कांग्रेस के शासनकाल में ऐसा नहीं होता था। इसके कारण कहीं दूर तलाश करने की जरूरत नहीं। आरएसएस के...
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