एक जमाना था, जब कक्षा से चुनावी भाषणों तक में ‘अहा ग्राम्य जीवन भी क्या है?' जैसे जुमले सुनने को मिलते थे. भला हो राग दरबारी के लेखक श्रीलाल शुक्ल का, जिन्होंने इस उपन्यास के मार्फत आजादी के बाद हमारे बदहाल गांवों की असलियत दिखाकर इस पाखंड पर ऐसी चोट की कि पढ़ने-लिखनेवाले लोग इस भावुक और निरर्थक मुहावरे से बचने लगे. फिर ‘90 के दशक में आर्थिक उदारीकरण...
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बेरोजगारी का दंश, जाति के तर्क--- ए. श्रीनिवासन
बीते शनिवार को मशहूर दलित लेखक और एक्टिविस्ट कांचा इलैया को हैदराबाद के उनके घर में नजरबंद कर दिया गया। आंध्र और तेलंगाना पुलिस ने सुरक्षात्मक वजहों से यह नजरबंदी की, ताकि इलैया को अभिव्यक्ति की आजादी विषय पर विजयवाड़ा में भाषण देने जाने से रोका जा सके। अपने लेखन से धार्मिक भावनाएं आहत करने के लिए कांचा इलैया को जान से मारने की कई धमकियां मिल चुकी हैं। इलैया...
More »ओबीसी आयोग का गठन--- सुभाष गताडे
दिल्ली उच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी का नाम पिछले दिनों अचानक सुर्खियों में आया, जब यह अधिसूचना जारी हुई कि राष्ट्रपति ने उन्हें अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के वर्गीकरण की पड़ताल के लिए बने आयोग का मुखिया बनाया गया है. आयोग में उनके अलावा तीन और सदस्य होंगे तथा सामाजिक न्याय मंत्रालय के एक संयुक्त सचिव इसके सचिव होंगे. इस आयोग को बारह सप्ताह के अंदर...
More »सिस्टम के दीमक ने कर दिया आदर्श ग्राम योजना को विफल-- सुरेन्द्र किशोर
कुछ अपवादों को छोड़ दें तो महत्वाकांक्षी सांसद आदर्श ग्राम योजना अंततः कुल मिलाकर विफल हो गयी. ऐसा इस बात के बावजूद हुआ कि इस देश में करीब-करीब हर राज्य में केंद्र और राज्य सरकार की करीब सवा दो सौ विकास और कल्याण की योजनाएं चलती हैं. केंद्र सरकार ने फैसला किया था कि इन्हीं योजनाओं के पैसों से गांवों को आदर्श बनाया जायेगा. पर, ये पैसे इस...
More »जनसंख्या नियंत्रण को राह दिखाता असम-- जयप्रकाश पाडे
महात्मा गांधी ने जब कहा था, ‘धरती पर सबकी जरूरत भर का सामान है, मगर सबके लालच को पूरा करने भर का नहीं', तब उन्हें आभास भी नहीं रहा होगा कि आने वाले समय में उन्हीं का देश जनसंख्या बढ़ोतरी से संत्रस्त हो जाएगा। आज स्थिति यह है कि तमाम कल्याणकारी योजनाएं उस रूप में जरूरतमंदों और आम जन तक पहुंच ही नहीं पा रही हैं, जिस रूप में उन्हें...
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