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पंचवर्षीय योजनाओं का आम बजट में हो सकता है पटाक्षेप

नई दिल्ली। योजना आयोग खत्म होने के बाद नेहरू युग का एक और प्रतीक इतिहास बनने जा रहा है। सरकार पंचवर्षीय योजनाएं बनाने की परंपरा छोड़कर विकास का "राष्ट्रीय एजेंडा" तैयार करने की नई शुरूआत कर सकती है। माना जा रहा है कि आगामी आम बजट में 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए अंतिम बार आवंटन के साथ ही केंद्रीयकृत पंचवर्षीय योजनाओं की मौजूदा व्यवस्था का पटाक्षेप हो सकता है। सूत्रों ने...

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नागरिक संगठनों ने की नये बजट में सामाजिक सुरक्षा योजना पर आबंटन बढ़ाने की अपील

नये बजट की चल रही तैयारियों के बीच नागरिक संगठनों ने वित्तमंत्री से मांग की है कि सामाजिक सुरक्षा के कार्यक्रमों के लिए आबंटन बढ़ाया जाय.(देखें नीचे दी गई लिंक)   जनवरी माह के पहले पखवाड़े में तकरीबन 20 नागरिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने बजट-पूर्व परामर्श के तहत वित्तमंत्री अरुण जेटली से भेंट की और तुरंत बाद के अपने प्रेस सम्मेलन में समवेत रुप से ध्यान दिलाया कि अपेक्षाकृत गरीब राज्यों में...

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उपलब्धियां बेमिसाल, फिर भी बाकी हैं सवाल- राजकुमार सिंह

आज हमारा गणतंत्र 66 साल का हो गया। लंबी गुलामी के बाद संघर्ष से मिली आजादी में गणतंत्र का यह सफर आसान हरगिज नहीं रहा। आजादी के साथ ही आयी विभाजन की विभीषिका से उबर कर भारत ने गणतंत्र की राह सोच-समझ कर ही चुनी थी। फिर भी अगर सफर आसान और परिणाम वांछित नहीं रहे, तो कारण विरासत में मिली जटिलताओं के साथ ही नीति-निर्धारण में दोष का भी...

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मिटे इंडिया और भारत का अंतर-- विश्वनाथ सचदेव

किसान नेता शरद जोशी ने ही पहली बार ‘इंडिया' और ‘भारत' का नारा दिया था. यह नारा देकर उन्होंने शहरी भारत व ग्रामीण भारत के अंतर को उजागर किया और इस अंतर को मिटाने की जरूरत को भी रेखांकित किया. सार्वभौम, समाजवादी पंथ-निरपेक्ष जनतांत्रिक गणतंत्र की घोषणा करनेवाले आमुख के बाद हमारे संविधान की शुरुआत जिन शब्दों से होती है, वह है ‘इंडिया जो कि भारत है.' हमारे संविधान निर्माताओं ने...

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जलवायु न्याय की डगर पर-- एन के सिंह

रॉबर्ट स्वान की इस पंक्ति को याद करना जरूरी है- यह सोच हमारी पृथ्वी के लिए सबसे बड़ा खतरा है कि कोई दूसरा इसे बचा लेगा। कई वैज्ञानिक रिपोर्ट यह इशारा करती हैं कि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के मौजूदा खतरे की वजह मानवीय गतिविधियां हैं, इसलिए इससे निपटने की जवाबदेही भी मनुष्यों की ही होनी चाहिए। बान की मून के शब्दों में- जलवायु परिवर्तन किसी सीमा से बंधा...

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