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पहाड़ी कोरवाओं की बेंवर--- खेती बाबा मायाराम

छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है लेकिन यहां ऐसे समुदाय भी हैं, जो धान की खेती नहीं करते। उनमें से एक समुदाय है पहाड़ी कोरवा। पहाड़ी कोरवा उन आदिम जनजाति में एक है जिनका जीवन पहाड़ों व जंगलों पर निर्भर है। यह आदिवासी पहाड़ों पर ही रहते हैं और इसलिए इन्हें पहाड़ी कोरवा कहते हैं। ये लोग बेंवर खेती करते हैं जिसमें सभी तरह के अनाज एक...

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किसानी का तीर्थ बनता तिउसा गांव --- बाबा मायाराम

महाराष्ट्र का एक गांव है तिउसा। यवतमाल से सोलह किलोमीटर दूर। यह गांव किसानों के लिए तीर्थ बन गया है। तीर्थ जहां कुछ अच्छाई है, किसान जहां अपना भविष्य देख रहे हैं। यहां बड़ी संख्या में किसान आ रहे हैं। खेती-किसानी की बारीकियां सीख रहे हैं। यहां के प्रयोगधर्मी किसान सुभाष शर्मा कई मायने में अनूठी खेती कर रहे हैं, जिसे वे सजीव खेती कहते हैं।     हाल ही मैं अपने कुछ...

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जैविक खेती की मौन क्रांति-- बाबा मायाराम

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में एक छोटा सा कस्बा है गनियारी। यहां का जन स्वास्थ्य सहयोग अस्पताल है जहां बीमारी के इलाज के साथ उसकी रोकथाम पर जोर दिया जाता है। स्वस्थ रहने के लिए लोगों को अच्छा भोजन मिले इसके लिए कृषि कार्यक्रम चलाया जा रहा है।   बिलासपुर जिले के कई गाँवों में किसान जैविक खेती से धान पैदावार बढ़ा रहे हैं। जब वर्ष 2000 में जन स्वास्थ्य सहयोग...

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पानीदार टेढ़ा पद्धति-- बाबा मायाराम

मौसम बदलाव के इस दौर में पानी का संकट एक बड़ी समस्या है, ऐसे में मुझे याद आती है छत्तीसगढ़ की टेड़ा पद्धति, जिसमें न केवल जरूरत के मुताबिक पानी निकाला जाता है, बल्कि इसमें पानी की आपूर्ति सतत् बनी रहती है, यह श्रम आधारित पद्धति है और किफायत से पानी खर्चने पर टिकी है.     छत्तीसगढ़ में जशपुर जिले का एक है गांव चराईखेड़ा। वह उरांव आदिवासियों का गांव है। उनकी...

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हरियाली से कुपोषण मिटाने की मुहिम--- बाबा मायाराम

मध्य प्रदेश के बैतूल और हरदा जिले में पिछले कुछ सालों से आदिवासी हरियाली अभियान चला रहे हैं। उनका नारा है- हरियाली लाएंगे, भुखमरी मिटाएंगे।इस मुहिम का उद्देश्य है, पहला तो यह कि आदिवासियों को कुपोषण से निजात मिल सके, उनकी आमदनी बढ़ सके और दूसरा, जंगलों को फिर से हरा-भरा बनाया जा सके, पर्यावरण सुधारा जा सके और जैव-विविधता का संवर्धन और संरक्षण किया जा सके। इससे मिट्टी...

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