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'हम कोरोना से बच भी गए तो ग़रीबी से मर जायेंगे' : जम्मू-कश्मीर के कामगार लड़ रहे ज़िंदा रहने की लड़ाई

-न्यूजक्लिक, जम्मू-कश्मीर में कोविड-19 की वजह से लॉकडाउन के विस्तार ने श्रमिक वर्ग के परिवारों के लिए अभूतपूर्व दुख पैदा किया है जो बस खाने भर का कमा पाते हैं। लॉकडाउन ने ऑटो रिक्शा चालकों, टैक्सी चालकों, शिकारा (हाउस बोट) के मालिकों, हस्तकला श्रमिकों, दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों और संविदाकर्मियों को छोड़ दिया है, जो अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जैसा कि वे अपने घरों में सीमित रहते...

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प्रवासी मजदूर एक बार फिर मुसीबत में फंसे

-प्रेस विज्ञप्ति 5 मई 2021, कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर में मृतकों की संख्या और संक्रमण की दर खतरनाक रूप से उच्च होने के कारण देश के कई हिस्सों में तालेबंदी और अन्य प्रतिबंध लगाए गए हैं। भले ही एक राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा नहीं की गई है, फिर भी सैर-आवश्यक आर्थिक गतिविधियों में और अधिक कटौती की मांग के साथ काम गंभीर रूप से बाधित हो गया है। परिणामी संकट...

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जच्चा-बच्चा सर्वे: गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं का एक बड़ा हिस्सा अभी भी मातृत्व लाभ से वंचित है

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 मातृत्व लाभ के लिए गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए केंद्र सरकार द्वारा 6,000 रुपए/ - प्रति बच्चा की गारंटी देता है. इस अधिनियन में वह शामिल नहीं हैं, जो केंद्र सरकार या राज्य सरकारों या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के साथ या अन्य कानूनों के तहत नियमित रोजगार में रहते हुए इस तरह के लाभ उठा रहे हैं. एनएफएसए-2013 भी कानूनी...

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भाजपाई राज्यों के लोकल रोजगार कानूनों और अखंड भारत के बीच फंसी संवैधानिकता

-जनपथ, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19: 19(ङ) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का, और 19(छ) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने का अधिकार होगा। हरियाणा का नया कानून: हरियाणा विधानसभा द्वारा नवंबर 2020 में पारित Haryana state Employment of Local Candidates Act, 2020  को राज्यपाल की मंजूरी के पश्चात राज्य की निजी कम्पनियों के लिए  50,000 मासिक तनख्वाह तक वाले रोजगार को स्थानीय नागरिक (जिसका जन्म राज्य...

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लॉकडाउन के बाद भी भुखमरी और सिकुड़ती आय के खतरे बरकरार!

11 राज्यों के 3,994 उत्तरदाताओं के बीच एक सर्वेक्षण के प्रारंभिक निष्कर्षों से पता चलता है कि अधिकांश कमजोर परिवारों और समुदायों, जैसे कि एससी, एसटी, ओबीसी, पीवीटीजी, झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाले, दिहाड़ी मजदूर, किसान, एकल महिला परिवार, इत्यादि में लॉकडाउन से पहले उनकी आय के स्तर की तुलना में सितंबर-अक्टूबर के दौरान उनकी आय कम रही है. राइट टू फूड कैंपेन और सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज (टेलीफोनिक सर्वेक्षण के...

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