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घरेलू कामगार: अर्थव्यवस्था का अंधेरा कोना- जैनेन्द्र कुमार

राजधानी दिल्ली में बीते दिनों एक सांसद और उसकी पत्नी पर आरोप लगा कि उन्होंने अपने घरेलू कामगार को मौत के घाट उतार दिया है. यही नहीं, कुछ पिछड़े राज्यों से देश की राजधानी में आकर घरेलू कामकाज करनेवाली महिलाओं पर अत्याचार की कहानियों से तो हम आये दिन दो-चार हो रहे हैं. क्यों होती हैं ऐसी घटनाएं, देश में घरेलू कामगारों के लिए किस तरह का है माहौल, क्या...

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भारत की खेतिहर आबादी में सबसे तेज गति से इजाफा- नई रिपोर्ट

बीते तीन दशक में भारत की खेतिहर आबादी दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले सबसे तेज गति से बढ़ी है। वर्ल्डवाच इंस्टीट्यूट के एक नये अध्ययन के अनुसार साल 1980 से 2011 के बीच भारत में खेतिहर आबादी में 50 फीसदी और चीन में 33 फीसदी की बढोतरी हुई है जबकि अमेरिका की खेतिहर आबादी में इसी अवधि में 37 फीसदी की कमी आई है। (कृपया देखें नीचे दी गई...

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चीन के बाजारों में भारत की ब्लैक टी की धूम

बीजिंग : भारत का कट्टर दुश्मन माना जानेवाला चीन यहां की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के लिए सस्ता सामान बना कर बाजार को लगातार कमजोर करता आ रहा है. भारत ने भी अब नहले पे दहला मारने जैसा चीन के बाजार में भारतीय वस्तुओं की पैठ बनाना शुरू कर दिया है. पहले भारत के उद्यमियों ने चीन में कारखाना खोल कर वहां की श्रमशक्ति का इस्तेमाल कर भारत को सस्ता माल देने का...

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घरेलू नौकरों के जीवन और जीविका की दशा पर परिचर्चा

इन्क्लूसिव मीडिया फॉर चेंज, सीएसडीएस, द्वारा आयोजित परिचर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं   विषय- Work like any other? Accounting for domestic work in India वक्ता: भारती बिरला, राष्ट्रीय परियोजना समायोजनक, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन(ILO)   नीता पिल्लई, प्रोफेसर, सेंटर फॉर विमेन्स डेवलपमेंट स्टडीज          अमरजीत कौर, राष्ट्रीय सचिव, ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस   मैक्सिमा एक्का,डोमेस्टिक वर्कर्स फोरम ब्रदर वर्गीज थेकनाथ- समायोजक, डोमेस्टिक वर्कर्स फोरम ऑव इंडिया   तारीख: 19 फरवरी ∣ स्थान: प्रेस क्लब ऑव इंडिया ∣ समय:...

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गरीबी का एक फसाना आईएलओ के हवाले से

कहते हैं हकीकत कल्पना से कहीं ज्यादा हैरतअंगेज होती है। ऐसी ही हैरतअंगेज हकीकत है कि भारत में बीते बीस सालों में तेज आर्थिक-वृद्धि हुई है लेकिन गरीब कामगारों की तादाद में कोई खास कमी नहीं आई है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन(आईएलओ) के एक हालिया रिपोर्ट (इकॉनॉमिक क्लास एंड लेबर मार्केट इन्क्लूजन: पुअर एंड मिडिल क्लास वर्कर्स इन डेवलपिंग एशिया एंड द पैसेफिक) में कहा गया है कि भारत सहित पूरे दक्षिण एशिया में ज्यादातर (91 फीसदी) कामगार “एकदम गरीब”...

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