जनसत्ता 23 अक्तूबर, 2013 : उत्पीड़न के साए में दिल्ली विश्वविद्यालय के आंबेडकर कॉलेज की कर्मचारी की आत्महत्या, महिला सशक्तीकरण को मात्र यौनिक सुरक्षा के चश्मे से देखने के प्रति गंभीर चेतावनी है। सभी मानेंगे कि देश की राजधानी के एक बड़े शिक्षा संस्थान के इस प्रचारित प्रकरण के चार वर्ष तक खिंचने की जरूरत नहीं थी, और इसका अंत न्याय में होना चाहिए था, न कि आत्महत्या में। काश,...
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आम आदमी और उसका राजनीतिक प्रयोग- गिरिराज किशोर
जनसत्ता 24 अक्तूबर, 2013 : आजादी के बाद एक प्रयोग डॉ राममनोहर लोहिया ने राज्यों में संविद सरकार बनवाने का किया था, जो सफल भी रहा। इसका कारण था, उन्होंने सरकारों के लिए कुछ मानक तय किए थे। उदाहरण के लिए, जब थानू पिल्लै की सरकार ने छात्रों पर गोली चलाई गई तो उन्होंने सरकार से त्यागपत्र देने को कहा। इस पर मतभेद हो गया। लेकिन वे इस सिद्धांत पर...
More »एक कदम आगे या एक कदम पीछे- संजय कुमार
राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति ; प्रारूप, ग्रामीण विकास मंत्रलय भारत सरकार के द्वारा सार्वजनिक बहस के लिए रखी गयी है. इस प्रारूप के शुरू में सरकार ने इस समस्या की गहराई को आंकड़ों के जरिये ही स्पष्ट रूप से यह सामने रखा है कि भारत जैसे देश में भूमि सुधीर का सवाल कितना अहम है. राष्ट्रीय प्रतिदर्श संगठन (एनएसएसओ के आंकड़ों 2003-04) के अनुसार करीब 41.63} परिवारों के पास घर के अलावा और...
More »लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने वाले- तवलीन सिंह
राहुल गांधी के कहने पर सरकार ने अपना अध्यादेश वापस ले लिया पिछले सप्ताह। जिस दिन से राहुल जी ने अध्यादेश के खिलाफ आवाज उठाई, उस दिन से ही तय हो गया कि ऐसा होना ही था, लेकिन ऐसा लगने लगा है मुझे कि दिल्ली में बैठे कई वरिष्ठ राजनीतिक पंडितों को अपनी 'बकवास' पर विश्वास होने लगा है। सो अध्यादेश के वापस लिए जाने के अगले दिन अखबारों की सुर्खियों...
More »दमनकारी पितृसत्ता की परतें- विकास नारायण राय
जनसत्ता 27 सितंबर, 2013 : ग्वालियर की एक कार्यशाला में एक कार्यकर्ता ने चंबल क्षेत्र में राज्य सरकार के ‘बेटी बचाओ’ अभियान से चिढ़े अभिभावक की प्रतिक्रिया बताई, ‘‘का हम अपनी मोढिन को मार न सकत।’’ मोढी यानी बेटी। क्या हम अपनी पत्नी को भी नहीं पीट सकते; यह हर भारतीय मर्द की अंदर की आवाज होती है। हर बाप अपनी बेटी को संपत्ति से वंचित करता ही है। हरियाणा में...
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