नरेंद्र मोदी सरकार के तीन साल के तीन बुनियादी सच हैं. इनमें से किसी भी सच से मुंह चुराना यानी आज हमारे देश की राजनीति से मुंह चुराना है. पहला सच है: नरेंद्र मोदी आज पूरे देश में लोकप्रिय प्रधानमंत्री हैं. दूसरा सच है: नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता उनके कामों और उपलब्धियों के कारण नहीं है, बल्कि उनकी छवि पर आधारित है. तीसरा सच है: मोदी की छवि कुछ तो...
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भूख में तनी हुई मुट्ठी का नाम...-- रविभूषण
धूमिल (9 नवंबर 1936-10 फरवरी 1975) ने लिखा था, 'भूख से रियाती हुई फैली हथेली का नाम दया है, और भूख में तनी मुट्ठी का नाम नक्सलबाड़ी है' (नक्सलबाड़ी कविता, संसद से सड़क तक, 1972 में संकलित). बाद में नागार्जुन ने अपनी एक कविता में यह सवाल किया, 'भुक्खड़ के हाथों में यह बंदूक कहां से आई?' भारतीय राजनीति पर फरवरी 1967 के लोकसभा चुनाव का रैडिकल प्रभाव पड़ा. पश्चिम...
More »जज को सजा से उपजे सवाल - विराग गुप्ता
कलकत्ता हाईकोर्ट के जज सीएस करनन का सुप्रीम कोर्ट के साथ शुरू हुआ चूहे-बिल्ली जैसा खेल एक तरह की संवैधानिक त्रासदी में तब्दील होता दिख रहा है। करनन ने सुप्रीम कोर्ट के आठ जजों के खिलाफ पांच वर्ष सश्रम कारावास का दुस्साहसिक आदेश दिया, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने करनन को छह महीने के लिए जेल भेजने का आदेश दे दिया है। गौरतलब है कि आजादी के बाद पहली बार...
More »आबादी के आधार पर न हो इजाफा - ए सूर्यप्रकाश
कुछ दिन पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने लोकसभा की सीटों में बढ़ोतरी करने का सुझाव दिया, ताकि जनाकांक्षाओं की सच्ची अभिव्यक्ति हो सके। उन्होंने कहा कि अगर ग्रेट ब्रिटेन में 600 संसदीय सीटें हो सकती हैं तो 1.28 अरब की आबादी वाले भारत में संसद की अधिक सीटें क्यों नहीं हो सकतीं। संसद में लोगों के व्यापक एवं सार्थक प्रतिनिधित्व को लेकर राष्ट्रपति की चिंता वाजिब है, लेकिन अगर सीटों...
More »नई संभावना का यूं दिशाहीन हो जाना - अरविंद मोहन
पहले दिल्ली विधानसभा के उपचुनाव और अब दिल्ली नगर निगम चुनावों के नतीजों से एक बात तो शीशे की साफ हो चुकी है कि दो-तीन साल पहले तक एक नए राजनीतिक तूफान की तरह उभर रहे अरविंद केजरीवाल और उनकी आम अदमी पार्टी यानी 'आप की नैया बुरी तरह डांवाडोल है। इसके लक्षण गिनवाने और क्रम निर्धारित करने की जरूरत नहीं है। कुछ दिन पूर्व दिल्ली विधानसभा की राजौरी गार्डन...
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