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'लिकेज रोकने में पंचायतों की हो सकती है अहम भूमिका' - डा. हरिश्वर दयाल

अर्थशास्त्री व श्रमिक अर्थव्यवस्था के जानकार डॉ हरिश्वर दयाल गांव के लिये शुरू किये गये कार्यक्रमों-योजनाओं के समुचित लाभ नहीं मिलने के लिए लिकेज को जिम्मेवार मानते हैं. उनका मानना है कि इसे दुरुस्त कर इसके लाभ को और प्रभावशाली बना सकते हैं. नौकरशाही की अस्थिरता को भी विकास के लिए नुकसानदायक मानते हैं. वे मानते हैं कि सामाजिक योजनाओं ने गांव के लोगों को आवाज दी है और जिसकी आवाज जितनी तेज होगी, उसे उतना पहले हक...

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मीडिया चालित समाज में लोकतंत्र- विपुल मुद्गल

हमने चर्चित कारपोरेट पीआर बॉस नीरा राडिया, मीडिया की नामवर हस्तियों और राजनीति के दिग्गजों की टेलीफोन की बातचीत के लीक हुए टेपों में जो कुछ सुना है वह एक मीडिया-चालित(मीडिया-आइज्ड) राजनीति की सटीक तस्वीर पेश करता है। इस प्रकरण से पता चलता है कि किस तरह से पेशेवर संवादकर्मी (प्रोफेशनल कम्युनिकेटर्स) महत्वपूर्ण नीतियों के मामलों में जनता की समझ को गढते या परिचालित करते हैं। निसंदेह...

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मोदी के गुजरात मॉडल का 'गड़बड़झाला'- ज्यां द्रेज

राजनीतिक गहमागहमी में देश जब मतदान-केंद्रों की तरफ बढ़ चला है तो ठोस तथ्यों और तर्कों से होने वाले जांच-परख की एक तरह से विदाई हो रही है. और इन पर हावी हो रहा है जन-संपर्क उद्योग का प्रचार-अभियान. पहला है नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व पर चढाया जा रहा रंग-रोगन ताकि वो लोगों की नजर में चढ़ जाए. अधिनायकवादी चरित्र और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रतिक्रियावादी मूल्यों में अंदर तक धंसे...

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अबला से सबला बनीं इंदिरावती अब दूसरों को दिला रहीं हैं न्याय- राहुल सिंह

लातेहार जिले की चंदवा पूर्वी पंचायत के धोबीटोला की रहने वाली इंदिरावती देवी संघर्ष की बदौलत अपने हक को पाने वाली महिला हैं. कभी दबी-कुचली और ससुराल वालों की प्रताड़ना की शिकार यह महिला सार्वजनिक मंचों के माध्यम से महिलाओं के हक की आवाज बुलंद करती हैं. अपने हक को पाने के साथ उन्होंने कई दूसरी महिलाओं को भी उनका हक दिलाने के लिए संघर्ष किया. एकल नारी सशक्तीकरण संगठन से 2005...

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गोपनीयता की आड़ में- जोगिन्दर सिंह

एक तरह से देखें तो भारत की सभी सरकारों का रवैया छिपाऊ रहा है। केवल रक्षा मामले में ही नहीं, विवादों, घोटालों, धोखाधड़ी या पक्षपात करने में अपनी निरंकुश ताकत का बेजा इस्तमाल करने से जुड़े सभी मामलों सरकारों का यह रुख साफ दिखता है। बेशक संविधान अभिव्यक्ति की आजादी की गारंटी देता है, लेकिन इस पर मानहानि से जुड़े कानून का बंधन भी है। एक संपादक ने मुझे बताया कि उसके अखबार...

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