हमारे समय की विडंबना है कि एक युग-व्यापी समाज चिंतक की भूमिका में डॉ बाबा साहेब आंबेडकर के ‘अच्छे दिन' अब आते लग रहे हैं। उनके एक सौ चौबीसवें जन्मदिन के अवसर पर हम उनकी बढ़ती प्रासंगिकता में यह सांत्वना ढूंढ़ सकते हैं कि हमारे पश्चिम-परस्त, ब्राह्मणवादी बुद्धिजीवी जगत में देर है अंधेर नहीं। आधी सदी की ‘रुकावट' के लिए खेद है, मगर देर-सवेर डॉक्टर साहेब को अपना मुनासिब स्थान...
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जन-स्वास्थ्य की पहली शर्त सुरक्षित भोजन- पूनम खेत्रपाल सिंह
कितनी बार हम खुद से पूछते हैं कि जो भोजन हम खा रहे हैं, क्या वह सुरक्षित है? क्या वह जीवाणु, वायरस, रसायनों या मिलावट से रहित है, जो डायरिया से लेकर कैंसर तक 200 तरह के रोगों का कारण बन सकते हैं? हर वर्ष दूषित भोजन व पानी के कारण दुनिया भर में 22 लाख लोग मौत के मुंह में पहुंच जाते हैं, इनमें 19 लाख बच्चे होते हैं।...
More »भूमि-अधिग्रहण पर महाभारत- दिनेश त्रिवेदी
वर्ष 1989 में जब वीपी सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा सरकार सत्ता में आई थी तो उससे काफी उम्मीदें थीं। सरकार से आम लोगों की बहुत सारी अपेक्षाएं जुडी थीं। सामान्य धारणा यही थी कि वह लंबे अरसे तक सत्ता में बनी रहेगी, लेकिन यह सपना एक वर्ष में ही बिखरने लगा। मंडल आयोग का मुद्दा राष्ट्रीय मोर्चा सरकार के लिए वाटरलू साबित हुआ और अंतत: सरकार धराशायी हो...
More »छत्तीसगढ़ में पीडीएस घोटाला सैकड़ों करोड़ रुपयों का
जिया कुरैशी/मृगेंद्र पाण्डे/रायपुर। एंटी करप्शन ब्यूरो के छापे से उजागर नागरिक आपूर्ति निगम का घोटाला छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में हर साल होने वाले घोटाले की महज एक झलक है। पिछले कुछ वर्षों में राज्य की सार्वजनिक वितरण 'ङणाली की गड़बड़ियों की जांच की जाए तो ये घोटाला सैकड़ों नहीं, हजार करोड़ का होगा। 'नईदुनिया' ने छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक वितरण 'ङणाली घोटाले के तौर तरीकों, मंत्री से लेकर हर स्तर...
More »ग्रामोद्योग की फिक्र किसे है- अरुण तिवारी
निवेश और उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न शुल्क और मंजूरियों में छूट से लेकर तकनीकी उन्नयन और इ-बिज पोर्टल जैसी तमाम घोषणाएं बजट में है। मंजूरियों में छूट को लेकर एक विधेयक लाने की तैयारी का संकेत भी कर दिया गया है। कहना न होगा कि वित्तमंत्री ने उद्योगों की तो खूब चिंता की, परग्रामोद्योगों को अब भी प्रतीक्षा है कि कोई आए और अलग से उनकी चिंता...
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