तरीके से फैलाई गई है कि माओवादी आदिवासियों के रहनुमा हैं। जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसी वजह से मेधा पाटकर, अरुंधति राय, स्वामी अग्निवेश जैसे सामाजिक कार्यकर्ता जब-तब माओवादियों के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। लेकिन यह भ्रम है। यह इत्तिफाक है कि अपने देश का जो वनक्षेत्र है वही जनजातीय क्षेत्र भी है, और माओवादी छापामार युद्ध की अपनी...
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देवली ब्रह्रग्राम की विधवाओं की मदद करेगा सुलभ
जनसत्ता संवाददाता, नयी दिल्ली। उत्तराखंड में गुप्तकाशी से सात किलोमीटर दूर एक ऐसा गांव है, जहां के लगभग सभी विवाहित पुरुष पिछले दिनों आई आपदा बाद से लापता हैं। उनके बचे होने की उम्मीद न के बराबर है। इस भीषण त्रासदी के बाद देवली ब्रह्मग्राम को गैर सरकारी संगठन सुलभ इंटरनेशनल ने गोद लेने का फैसला किया है। सुलभ के बिंदेश्वर पाठक ने इस गांव के छह टोलों की सभी...
More »जाति की नई राजनीति- बद्रीनारायण
जनतंत्र सत्ता एवं सामाजिक संरचना के पिरामिड में उथल-पुथल मचाता रहता है। कई बार कई समाजों में जो सामाजिक समूह नीचे रहे हैं, उन्हें वह ऊपर, और जो ऊपर रहे हैं उन्हें वह नीचे ला देता है। लेकिन खासकर ‘भारतीय जनतंत्र' से सामाजिक पिरामिड के ‘ऊपर' और ‘नीचे' को समाप्त कर समानता लाने की अपेक्षा अब भी दूर की कौड़ी ही है। भारतीय समाज एवं राजसत्ता के शीर्ष पर ब्राह्मण और...
More »वंदना के आविष्कार ने महिलाओं का बढ़ाया मान
आम धारणा है कि गांव की औरतें घर की दहलीज तक ही सीमित रहती हैं. खाना बनाने और बाल-बच्चों की परवरिश के अलावा कुछ नहीं कर सकतीं. बदलते परिवेश में यह बीते जमाने की बात हो गयी है. अब गांव-घर की औरतें पुरुषों से भी दो कदम आगे हैं. अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं. बांका की बहू और भागलपुर दराधी की बेटी वंदना को उदाहरण के तौर पर ले...
More »हिमालय पर घात- श्रुति जैन
जनसत्ता 29 जून, 2013: उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में तबाही अभी थमी नहीं है और प्रधानमंत्री जम्मू कश्मीर में साढ़े आठ सौ मेगावाट की जलविद्युत परियोजना का उद्घाटन कर आए हैं। विकास के नाम पर पिछले कुछ साल से जिस गति से पूरे हिमालय क्षेत्र में इन परियोजनाओं को बढ़ावा मिलता रहा है वह भयानक है। सभी प्रस्तावित परियोजनाएं क्रियान्वित हो जाएं तो हिमालय दुनिया में सबसे ज्यादा बांध घनत्व...
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