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सबकी पहुंच में हो बिजली- वरुण गांधी

भारत में तकरीबन साढ़े सात करोड़ परिवार ऐसे हैं, जिनके घरों��� में बिजली नहीं है। बिजली के उत्पादन के लिए हम कोयले का आयात करते हैं। हम पूरे देश में बिजली का पारेषण करते हैं, जिसमें समग्र तकनीकी और वाणिज्यिक हानि के तौर पर 25 फीसदी बिजली का नुकसान उठाना पड़ता है। जहां तक बिजली के दाम के सवाल है, तो यह जिन दामों पर बेची जाती है, वे बाजार...

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योग ग्लैमरस है, ग़रीब की मौत नहीं?- कुमार केतकर

मौत में कोई ग्लैमर नहीं होता. ख़ासकर ग़रीब झुग्गीवालों की मौत में. मुंबई में झुग्गीवाले भी रहते हैं और करोड़पति भी. आमतौर पर दोनों फ़िल्मों को छोड़कर कहीं और नहीं मिलते. लेकिन यहाँ ऐसे भी माफ़िया करोड़पति भी हैं जो मुंबई की बड़ी झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले अभागे ग़रीबों पर फलते-फूलते हैं. मुंबई की झुग्गियों में 50 लाख से ज़्यादा लोग रहते हैं. इनकी जीवन शैली सहारा मरुस्थल के देशों या सोमालिया...

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इमरजेंसी में कई मायनों में हुई थी चूक - जस्टिस राजिंदर सच्‍चर

जो देश अपने हाल-फिलहाल का इतिहास याद नहीं रखते, वे एक ही तरह की दुर्घटना दोहराने का खतरा उठाते हैं। देश की दो तिहाई आबादी 35 साल से नीचे की है। यदि इनमें से किसी से आपातकाल लगाए जाने के दिन यानी 26 जून, 1975 का महत्व पूछिए तो उनके चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभरते हैं। कई बार 55 साल के लोगों से भी ऐसा जवाब नहीं मिलता, जिससे...

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एक इम्तिहान है मैगी का मामला - जगमोहन सिंह राजपूत

दो मिनट में बनकर तैयार हो जाने वाली मैगी ने सारे भारत को हिला दिया है। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि इस बार तो स्वाद पूरी तरह बेमजा हो गया। नेस्ले के नूडल्स घर-घर ही नहीं, अब तो गांवों तक अपनी पहुंच बना चुके थे। वे लोग जो चाहते हैं कि सारी दुनिया में एक भाषा, एक पहनावा, एक खाना ही चले, मैगी जैसे प्रचलन को अपनी...

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एक अनूठी विरासत का बेजा विरोध - स्‍वपन दासगुप्‍ता

अभी ज्यादा दिन नहीं हुए, जब भारत के बारे में बाकी दुनिया, विशेष रूप से पश्चिमी जगत में दो तरह की धारणाएं विद्यमान थीं। पहली धारणा यह थी कि भारत का मतलब उत्पीड़न, भुखमरी, बीमारी और बूचड़खाना है। दूसरी धारणा के रूप में भारत की छवि एक ऐसे देश की थी, जहां साधुओं, भिखारियों, सपेरों, बाघों, हाथियों और हीरे-जवाहरातों से लदे महाराजाओं की भरमार है। यही मिथकों वाला भारत था...

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