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भोजन का अधिकार विधेयक- बहुत देर कर दी...

क्या सूखाड़ की ओट लेकर आहार-सुरक्षा के विधेयक को लाने में देरी की जा रही है। कम से कम भाजन के अधिकार अभियान से जुड़े गणमान्य नागरिकों और संगठनों के एक हिस्से का यही मानना है। अभियान से जुड़े संगठनों की मांग है कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजन के अधिकार विधेयक के संबंध में तुरंत सलाह मशविरे की प्रक्रिया शुरु की जानी चाहिए ताकि प्रस्तावित विधेयक को जल्दी से जल्दी...

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कृषि सुरक्षा पर देवभूमि की सतर्क पहल

देहरादून। अगले पांच वर्ष में राज्य में कृषि विकास दर को चार प्रतिशत करने का लक्ष्य है। मैदानी व पहाड़ी क्षेत्रों के खेतों की उर्वर क्षमता में आ रही गिरावट के कारण लक्ष्य हासिल करने को बागवानी व पशुपालन पर अधिक भरोसा जताया जा रहा है। मिश्रित खेती के साथ ही दलहन व तिलहन पर ज्यादा जोर रहेगा। कृषि विकास के पंचवर्षीय राज्य स्तरीय प्लान का होमवर्क पूरा हो गया...

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विलुप्त हो रहे परंपरागत बीजों को बचाने की दरकार

हरित क्रांति की शुरुआत करने वाले नॉर्मन बोरलॉग को हाइब्रिड यानी संकर किस्म के बीज तैयार करने के लिए अक्सर याद किया जाता है लेकिन आज छोटे किसानों के कई ऐसे समूह हैं जो पारंपरिक बीजों की खोज कर रहे हैं। ऐसे बीजों की बुआई कुछ जगहों पर प्राथमिकता के आधार पर होती है और वहां हाइब्रिड बीज का इस्तेमाल नहीं होता है। दो साल पहले छत्तीसगढ़ में भारी बारिश हुई...

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पर्यावरण की राजनीति और धरती का संकट

खुद मनुष्य ने अपनी भावी पीढ़ियों की जिंदगी को दांव पर लगा दिया है। दुनिया भर में चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही हैं। सवाल ल्कुल साफ है- क्या हम खुद और अपनी आगे की पीढ़ियों को बिगड़ते पर्यावरण के असर से बचा सकते हैं? और जवाब भी उतना ही स्पष्ट- अगर हम अब भी नहीं संभले तो शायद बहुत देर हो जाएगी। चुनौती हर रोज ज्यादा बड़ी होती...

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भूख का बढ़ता भूगोल

भारत में जब से आर्थिक उदारीकरण आया है, एक अद्भुत विरोधाभास उदारवादियों में देखने को मिला है। जहां भारत में कई जगह अभ्युदय हो रहा है। वहीं हालात 20 साल से ज्यादा खराब होते गए हैं। खासकर लोगों की खुराक कम हुई है। सिर्फ जिंदा रहने के लिए लोग इस देश में भोजन ग्रहण कर रहे हैं और इसका मूल कारण जनसंख्या का बढ़ना नहीं है, जैसा कि अनुमान लगाया...

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