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डरबन से आगे की डगर- सुनील यादव

दक्षिण अफ्रीका के डरबन शहर में आयोजित संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन से लौटने के बाद अब विभिन्न देशों ने ‘क्या खोया- क्या पाया’ का आकलन शुरू कर दिया है। ऐसे में हम पाते हैं कि पर्यावरणीय चिंता के वैश्विक सवाल पर यूरोपीय संघ जहां विजेता की मुद्रा में है, वहीं हमारा देश ‘अड़ियल’ का खिताब लेकर लौटा है। संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन समझौते के अंतर्गत 1992 में ब्राजील के रियो...

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दिल्ली उनका परदेस - हमंत शर्मा

जनसत्ता 15 दिसंबर, 2011:  पिताश्री ठीक होकर बनारस लौट गए हैं। मैं उन्हें दिल्ली में उतने ही दिन रोक पाया जब तक वे बिस्तर पर थे। उनका दिल सामान्य आदमी से आधा धड़क रहा था। इस कारण शरीर के दूसरे हिस्से में खून और आॅक्सीजन की आपूर्ति काफी कम थी। डॉक्टरों ने उनके दिल में पेसमेकर लगाया। वे ठीक होते ही एक रोज भी यहां नहीं रुके। लौट गए बनारस।...

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रेहड़ी-पटरी वालों को न भूलें- भारत डोगरा

चारों तरफ से पड़े दबाव के कारण केंद्र सरकार ने रिटेल में एफडीआई का फैसला फिलहाल भले ही मुलतवी कर दिया है, लेकिन आज नहीं, तो कल वह इसे लागू करेगी ही। प्रासंगिक सवाल यह है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बुलाने वाली सरकार को आज रेहड़ी-पटरी वालों के प्रति अपनी जिम्मेदारी की याद भला कौन और कैसे दिलाए। पर सरकार को यह याद दिलाना जरूरी है, क्योंकि अर्थव्यवस्था में रोजगार सृजन के...

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‘पहुंच’ की अर्थव्यवस्था- सुनील खिलनानी

कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया के टेप और विकिलीक्स के खुलासे पिछले एक दशक में मजबूती से सामने आए दो बुनियादी और परस्पर संबंधित राजनीतिक नजरिये की पुष्टि करते हैं। इनमें एक वैश्विक है और दूसरा स्थानीय। इनमें से पहला सत्ता की प्रकृति के बारे में है। आधुनिक विश्व में अमेरिकी सैन्य शक्ति और उसकी व्यापारिक ताकत के अतिरिक्त सत्ता सूचनाओं पर ज्यादा टिकी है, जो हथियार या खजाने पर नियंत्रण रखती...

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प्रतिरोध की राजनीति- सुनील खिलनानी

अन्ना हजारे के आंदोलन के साथ ही हाल के दिनों में उभरे खनन विवाद, जमीन विवाद, परमाणु संयंत्र के खिलाफ माहौल या खाप पंचायत या गुर्जरों का क्षोभ जैसे दूसरे आंदोलन केवल सत्ता में स्थित खास पार्टी के खिलाफ चुनौती भर नहीं हैं, बल्कि वे हमारी सरकारों की शासन की क्षमता पर सवाल उठाने से भी ज्यादा गहरे हैं। वस्तुतः वे हमारे राजनीतिक क्षेत्र की भावना को समय-समय पर अस्थिर...

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