बंधुआ मज़दूरी प्रथा को 44 साल पहले यानी 1976 में भले ही ग़ैर-क़ानूनी घोषित किया गया हो, लेकिन अब भी रह-रहकर इसे जुड़ी ख़बरें आती ही रहती हैं. लेकिन न तो मुख्यधारा का मीडिया इन ख़बरों को जगह देता है और न ही सरकार द्वारा इन घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए कोई पुख़्ता कदम उठाए जाते हैं. केंद्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के जम्मू की राजौरी तहसील में दो ईंट-भट्ठों...
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जेएनयू हिंसा: नए-नए दुश्मन की तलाश में सर्वनाशी सियासत
जेएनयू में हुई विस्मयकारी हिंसा से आपको यह आसान बात समझा आ जानी चाहिए कि भारत एक ऐसी सत्ता द्वारा शासित हो रहा है जिसके होने का एकमात्र कारण विरोध का ज़रिया ढूंढ़ना और उसे क्रूरता से कुचलना है. कायर ठगों का भारत के सबसे प्रमुख विश्वविद्यालयों में से एक में इस तरह घूमना, शिक्षकों और विद्यार्थियों का सर फोड़ देना, जेएनयू प्रशासन द्वारा मामूली हाथापाई बताकर दरकिनार करने वाली...
More »अमरावती के किसानों ने राष्ट्रपति से दया मृत्यु की मांग करते हुए पत्र लिखा
आंध्र प्रदेश के अमरावती के किसानों ने मंगलवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर उनसे ‘दया मृत्यु’ की इजाजत देने की अपील की। उन्होंने लिखा है कि राज्य की वाई एस जगनमोहन रेड्डी सरकार आंध्र प्रदेश की राजधानी अन्य स्थान पर ले जाने का निर्णय लेकर इस क्षेत्र के लोगों से बदला लेने की नीति पर चल रही है। नावुलुरू के किसानों ने इस पत्र में राष्ट्रपति से राजधानी अन्यत्र...
More »कोटा में 100 बच्चों की मौत के लिए कौन दोषी है?
"मैं अपने बच्चे के निमोनिया का इलाज कराने के लिए यहां से 50 किलोमीटर दूर से आया हूं. इतनी सर्दी थी रास्ते में. बच्चे की सांस तेज़ चल रही थी. बच्चे की हालत देखकर ही डर लग रहा था..." ये शब्द मोहन मेघवाल के हैं जो अपने बच्चे का इलाज कराने के लिए राजस्थान में कोटा के जेके लोन अस्पताल आए थे. ये वही अस्पताल है, जहां बीते 30 दिनों में...
More »NRC को पूंजीवादी दृष्टि से भी देखा जाना चाहिए
एनआरसी को अभी तक सिर्फ़ कम्युनल और संवैधानिक दृष्टि से ही देखा गया है। एनआरसी पूंजीवादी के कितना काम आ सकता है, किस तरह काम आ सकता है इस पर भी एक नज़र डाल लेना चाहिए। क्योकि पूंजीवादी जब फासीवाद को अपना हथियार बना लेता है तो दमन और क्रूरता के सारे पुराने मापदंड टूट जाते हैं।इसे समझना हो तोलोकल इंटेलिंजेंस यूनिट के हवाले से लिखी गई अमर उजाला की...
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