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अच्छे दिनों की सतर्क उम्मीद-- कन्हैया सिंह

चालू वित्त वर्ष का आर्थिक सर्वेक्षण बताता है कि आर्थिक मोर्चे पर सरकार इस बार काफी सतर्कता बरत रही है। खासकर वर्तमान के आकलन और भविष्य के लक्ष्य तय करने के मामले में। बड़ी-बड़ी उम्मीदें बांधने की बजाय उसने व्यावहारिक रवैया अपनाया है। मसलन, अगले वित्त वर्ष की विकास दर को ही लें। सरकार ने अनुमान लगाया है कि अगले साल जीडीपी की विकास दर सात से साढ़े सात फीसदी के...

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हर रोज ढाई हजार किसान छोड़ रहे हैं खेती

लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता किशन पटनायक ने कहा कि खेती और किसान की वर्तमान दशा के बीच यक्ष प्रश्न यह उठ खड़ा हुआ है कि वास्तव में किसान कौन हैं, किसान की क्या परिभाषा हो? एेसा इसलिए है कि वित्तीय योजनाओं के संदर्भ में किसान की एक परिभाषा है, तो राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो का कोई दूसरा मापदंड है, पुलिस की नजर में किसान की अलग परिभाषा है... इन सबके...

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कैसा हो हरदिल अजीज बजट- सुषमा रामचंद्रन

आगामी आम बजट सरकार के लिए बहुत खास है। उसकी दशा-दिशा के लिए यह बेहद मायने रखता है। वैसे तो हर आम बजट देश के वित्त मंत्री के लिए एक चुनौती होता है और सभी को खुश करना भी आसान नहीं, लेकिन अरुण जेटली के लिए एनडीए सरकार का यह तीसरा बजट इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि कई अर्थों में सरकार का राजनीतिक भविष्य इस बजट पर निर्भर करेगा। मोदी सरकार बड़े...

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फंदा ऋण का, फांस बचत की-- अनिल रघुराज

हम ही हम हैं सब जगह. हमारे बिना किसी का काम नहीं चलता. न सरकार की सत्ता चलती है और न ही कंपनियों और बैंकों का धंधा. टैक्स से रूप में मिला जनधन ही सरकार की संजीवनी है और लोगों से मिली जमा ही बैंकों का मूलाधार है. लेकिन विचित्र कालिदासी व्यवस्था है कि सभी अपने मूलाधार को ही काटने में जुटे हैं. इसे रोकने के सरंजाम जरूर हैं. लेकिन...

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बैंकों के फंसे कर्ज पर चुप्पी क्यों- देविन्दर शर्मा

हाल में एक प्रमुख अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट हैरान करने वाली थी। पिछले तीन वित्त वर्षों के दौरान 29 राष्ट्रीयकृत बैंकों ने 1.14 लाख करोड़ रुपये के कर्ज को न वसूल हो सकने वाले डूबत खाते में डाल दिया। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, 7.32 लाख करोड़ रुपये का ऋण आश्चर्यजनक रूप से सिर्फ दस कंपनियों को दिए गए था। ये रिपोर्टें ऐसे वक्त में आ रही हैं, जब आर्थिक...

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