जनसत्ता 2 फरवरी, 2012 : हाल के वैश्विक संकट ने विश्व-स्तर पर लोगों को नए सिरे से आर्थिक नीतियों के बारे में सोचने के लिए प्रेरित किया है। अब आम लोग और विशेषज्ञ दोनों निजीकरण, बाजारीकरण और भूमंडलीकरण पर आधारित मॉडल की प्रासंगिकता पर सवाल उठा रहे हैं। आम लोगों की बेचैनी की अभिव्यक्ति सबसे प्रबल रूप में आक्युपाइ द वॉल स्ट्रीट आंदोलन के रूप में हुई है। दूसरी ओर, इस बार...
More »SEARCH RESULT
अमीरी रेखा की जरूरत- सुनील
जनसत्ता 12 दिसंबर, 2011 : कुछ माह पहले जब योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दिया कि शहरों में बत्तीस रु. और गांवों में छब्बीस रु. प्रतिदिन खर्च करने वालों को गरीबी रेखा से ऊपर माना जाएगा, तो देश के संभ्रांत पढ़े-लिखे लोगों में और मीडिया में खलबली मच गई। अहलूवालिया से लेकर जयराम रमेश तक को सफाई में बयान देने पडे। उन्होंने यह...
More »पेयजल के लिए तरसे अपर चौरा में प्राइमरी स्कूल के नौनिहाल
संवाद सहयोगी, रिकांगपिओ : तहसील निचार के अपर चौरा प्राइमरी स्कूल के नौनिहाल दो महीने से पानी के लिए तरस रहे हैं। अपर चौरा के प्राइमरी स्कूल सहित सौंडार गांव के लोग एलएनटी व जेपी कंपनी के टावर लाइन निर्माण के समय पाइप लाइनों को हुए नुकसान के बाद से पानी ढोकर पी रहे हैं। सौंडार गांव के भजन लाल ने बताया कि उन्होंने इसकी जानकारी कई बार सिंचाई एवं...
More »यहां घर-घर में हैं पीलिया के मरीज
जालंधर. मास्टर ज्ञानचंद राजू के लिए ३१ अक्तूबर, 2010 की तारीख का खास महत्व था, क्योंकि इसी दिन वह शिक्षा विभाग से रिटायर हुए थे। लेकिन 2011 की यही ३१ अक्तूबर की रात परिवार के लिए कभी न भूलने वाली साबित हो गई। जोगिंदर नगर के रहने वाले रिटा. मास्टर ज्ञानचंद राजू की सोमवार रात पीलिया से मौत हो गई। बाबा बुड्ढा जी नगर में पीलिया अभी शांत नहीं हुआ कि इसकी...
More »गरीबों की गिनती का सच : हर्ष मंदर
मानवीय अस्मिता के साथ जीवन बिताने के लिए किसी गरीब व्यक्ति को कितने पैसे की जरूरत हो सकती है? हम जिस समय में जी रहे हैं, उसमें ऐसा कभी-कभार ही होता है कि अखबारों के फ्रंट पेज और खबरिया चैनलों के प्राइम टाइम बुलेटिनों में यह सवाल सुर्खियों में आया हो। यह भी आम तौर पर नहीं होता कि इस पहेली ने मध्यवर्ग की चेतना को चुनौती दी हो। लेकिन जब...
More »