हर किसी का अपना-अपना आर्थिक जीवन है. वयस्क वर्तमान हैं, तो बच्चे भविष्य की तैयारी हैं. यहां तक कि बेरोजगारों का भी आर्थिक जीवन है, क्योंकि यहां सिर्फ कमाने या बनाने ही नहीं, खपत का भी योगदान है. हम अपने पास-पड़ोस के आर्थिक जीवन से भी वाकिफ रहते हैं. लेकिन, जब सारे देश की बात होती है, तो सब कुछ धुआं-धुआं हो जाता है. उसमें भी जब जीडीपी की चर्चा...
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मोदीजी की सुनें या अर्थशास्त्रियों की -- रविभूषण
विगत ढाई वर्ष में मोदी सरकार ने प्रचार पर 11 अरब से अधिक रुपये खर्च किये हैं. नोटबंदी के द्वारा भ्रष्टाचार और कालेधन की समाप्ति की जो बात की जा रही है, कैशलेस समाज और भारत बनाने पर जिस तरह बल दिया जा रहा है, उस पर स्थिरचित्त से विचार करना ज्यादा जरूरी है, क्योंकि मोदी का कोई कार्यक्रम अकेला नहीं होता. एक स्ट्रोक से कई निशाने लगाने की ऐसी...
More »ताकि लड़कियां हों लीडर --- सुजाता
अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य की पिछले दिनों एक महत्वपूर्ण घटना कही जा सकती है अमेरिका के राष्ट्रपति पद का चुनाव और उसमें भी डोनाल्ड ट्रंप की जीत. इसे राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर हिलेरी क्लिंटन की हार भी कही जा सकती है. राजनीतिज्ञ इसकी बारीकियों को बता सकते हैं और आनेवाले दिनों में विश्व राजनीति व अर्थव्यवस्था से जुड़ी भविष्यवाणियां भी कर सकते हैं. राष्ट्रपति के तौर पर नहीं, स्त्री के तौर...
More »कितना हमला, कितना जुमला!-- अनिल रघुराज
सड़क से संसद तक फैली अशांति के बीच केंद्र सरकार की गति सांप और छछुंदर जैसी हो गयी है. न उगलते बन रहा है और न निगलते. एक मुश्किल सुलझाने निकले तो बड़ी मुसीबत गले पड़ गयी. दरअसल, पिछले महीने दीवाली के चंद दिन पहले ही केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने आंकड़ा जारी किया कि देश की 129.5 करोड़ की आबादी में से मात्र 3.65 करोड़ या 2.8 प्रतिशत लोग...
More »राजनीति में भ्रष्टाचार के साथ ही बढ़ता गया काला धन-- सुरेन्द्रकिशोर
ब्रिटिश अर्थशास्त्री कैलडोर ने 1956 में यह बताया था कि भारत में काला धन सकल घरेलू उत्पाद का 4-5 प्रतिशत है. वांचू कमेटी के अनुसार 1970 में करीब सात प्रतिशत था. एक अध्ययन के अनुसार 1985 में यह जीडीपी का 18-20 प्रतिशत हो गया. एक अन्य अध्ययन के अनुसार 1995-96 में यह बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया था. 2005-6 में यह 50 प्रतिशत तक पहुंच गया....
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