भोपाल. सरकारी योजनाओं का अफसर और अमला कैसे माखौल उड़ाते हैं यह लाल परेड मैदान के किसान मेले में बंट रहे साहित्य और पचरे से आसानी से समझा जा सकता है। खासतौर पर केंद्र सरकार के कृषि से जुड़े स्टालों पर तो किसानों को अंग्रेजी के पर्चे ही थमाये जा रहे थे। इनमें से कुछ ऐसे थे जिन्हें बांटने वाले भी अटक-अटक कर पढ़ पा रहे थे। राज्य सरकार के कुछ स्टालों...
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बीच बहस में न्यूनतम मजदूरी
हालांकि केंद्र सरकार ने मनरेगा के अन्तर्गत दी जाने वाले मजदूरी को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जोड़ने की बात मान ली है, फिर भी वह इस मामले में संविधानप्रदत्त न्यूनतम मजदूरी देने में संकोच कर रही है जबकि देश के कई सूबों में अब भी मनरेगा के अन्तर्गत दी जाने वाली मजदूरी न्यूतम मजदूरी से कम है। सरकार का तर्क है कि न्यूनतम मजदूरी दी गई तो बढ़ा हुआ वित्तीय...
More »पांचवी के बच्चों को नहीं आता दूसरी कक्षा का पाठ पढना
रायपुर.राज्य में शिक्षा की कई योजनाओं के लागू होने के बावजूद पढ़ाई में काफी कसर बाकी है। वर्ष 2010 में स्कूलों में एक फीसदी ड्रॉपआउट बढ़ा है। पहली के 20 फीसदी बच्चे अक्षर नहीं पहचाते और पांचवीं के 61.6 प्रतिशत बच्चे दूसरी कक्षा का पाठ भी नहीं पढ़ पाते। प्रदेश में सरकारी स्कूलों को मिलने वाले अनुदान का भी समुचित उपयोग नहीं हो रहा है। बच्चों व शिक्षकों...
More »खेती में असली क्रांति -- देविंदर शर्मा
2010 तो इतिहास बनने जा रहा है. मैं सशंकित हूं कि क्या नया साल किसानों के लिए कोई उम्मीद जगाएगा? अनेक वर्षो से मैं नए साल से पहले प्रार्थना और उम्मीद करता हूं कि कम से कम यह साल तो किसानों के चेहरे पर मुस्कान लाएगा, किंतु दुर्भाग्य से ऐसा कभी नहीं हुआ. साल दर साल किसानों की आर्थिक दशा बद से बदतर होती जा रही है. साथ ही कृषि भूमि...
More »कुपोषण की चपेट में सहरिया जनजाति के नौनिहाल-एएचआरसी
परंत, राजवीर, रामकुमारी,सन्नी- ये नाम घनघोर कुपोषण में दम तोड़ने वाले बच्चों के हैं। 3 साल या फिर इससे भी कम उम्र के सभी बच्चे मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले गांवों में आबाद सहरिया जनजाति के हैं। आशिक, कुलदीप,पवन और मालती जैसे कुछ बच्चे और हैं, ये भी सहरिया जनजाति के ही हैं और कुपोषण की चपेट में इनका भी दम किसी क्षण टूट सकता है।(देखें लिंक संख्या-1) मानवाधिकारों के मोर्चे पर...
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