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गांधी के सपनों का स्वराज-- श्री भगवान सिंह

वैसे महात्मा गांधी ‘स्वराज' या ‘स्वराज्य' संबंधी अपनी अवधारणा को जीवनपर्यन्त परिभाषित करते रहे, लेकिन जहां तक मैं समझ सका हूं, हिंदुस्तान के संदर्भ में उन्होंने जिस स्वराज की परिकल्पना की थी, उसके केंद्र में थी गांवों की स्वायत्त, स्वावलंबी अर्थ एवं प्रबंधन सत्ता। उनकी दृष्टि में गांवों की संपन्नता में ही देश की संपन्नता तथा गांवों की स्वायत्त पंचायती व्यवस्था में ही देश की सच्ची प्रजातांत्रिक छवि अभिव्यक्ति पा...

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राजतंत्र से जनतंत्र तक-- संदीप मानुधने

जब अंगरेज भारत छोड़ कर गये, उन्होंने वे सभी प्रयास प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से किये, जिससे उपमहाद्वीप में सदा के लिए दरारें पड़ी रहें. अंगरेजों की दिली तमन्ना थी कि भारत टुकड़े-टुकड़े हो जायेगा, क्योंकि इसे एक करनेवाला कोई है ही नहीं. लेकिन, उनके मंसूबों पर भारत के नेताओं ने पानी फेर दिया. सरदार पटेल ने पूरे देश को एक सूत्र में बांध दिया, पंडित नेहरू ने एक लोकतांत्रिक...

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SC ने सोशल मीडिया साइट पर प्राइवेसी को लेकर सरकार से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने व्हाटसऐप और फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट के जरिये निजी संवाद का व्यावसायिक शोषण को नियंत्रित करने के लिये प्राइवेसी की पॉलिसी बनाने के लिए दायर याचिका पर सरकार और दूरसंचार नियामक प्राधिकरण से सोमवार को जवाब मांगा है। चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने व्हाटसऐप और फेसबुक को भी नोटिस जारी किये हैं। इन सभी को दो सप्ताह के...

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मोदी के खिलाफ याचिका खारिज

नयी दिल्ली (ट्रिन्यू) : देश की सर्वोच्च अदालत ने बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बड़ी राहत देते हुए सहारा-बिड़ला डायरी से संबंधित जांच कराने की याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि इसमें नरेंद्र मोदी के खिलाफ पर्याप्त सुबूत नहीं हैं। कॉमन कॉज की ओर से प्रशांत भूषण ने अपनी याचिका के समर्थन में कुछ दस्तावेज भी सुप्रीम कोर्ट को सौंपे थे। कोर्ट ने दस्तावेजों को देखने के...

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धर्म और जाति पर न हो वोट--- विश्वनाथ सचदेव

‘अभी रुग्ण है तेरे-मेरे जीने का विश्वास रे', इस पंक्ति में कवि ने जीने के विश्वास को परिभाषित करते हुए उन जनतांत्रिक मूल्यों-सिद्धांतों का हवाला दिया था, जिनके आधार पर हमने स्वतंत्रता पाने के बाद एक पंथ-निरपेक्ष, समतावादी राष्ट्र-समाज के निर्माण का संकल्प लिया था. यह त्रासदी ही है कि वैसा समाज, वैसी व्यवस्था आज भी एक सपना ही है. आज भी हमारा देश धर्मों, जातियों, वर्गों में बंटा हुआ...

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