राजनीति विचारधारा या भावना से चलती है और अर्थनीति शुद्ध स्वार्थ की नीितयों से. पिछले 60-70 वर्षों में एक तरफ राजनीति में भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक जंग की बात भारत में बार-बार हुई, तो दूसरी तरफ भ्रष्ट ताकतों ने आर्थिक नियमों, कंपनी कानूनों को ऐसा बनाया कि भ्रष्टाचार की जड़ें लगातार मजबूत होती गयीं. शेल कंपनियां ऐसे ही कंपनी कानूनों की उपज हैं, पर आश्चर्य यह है कि 60-70 वर्षों...
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कामयाब रहा नोटबंदी का मकसद - अरुण जेटली
भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में 8 नवंबर, 2016 का दिन बेहद निर्णायक माना जाएगा। यह दिन इस सरकार द्वारा काले धन पर प्रहार की याद दिलाता है। देश की जनता भ्रष्टाचार और काले धन को लेकर 'चलता है वाले रवैये को झेलने पर मजबूर थी और इसकी सबसे ज्यादा मार मध्यवर्ग और समाज के निचले तबके को झेलनी पड़ती थी। यह जनता की लंबे अरसे से आकांक्षा थी कि भ्रष्टाचार...
More »अभिजीत मुखोपाध्याय-- अभिजीत मुखोपाध्याय
विमुद्रीकरण की घोषणा के ठीक एक साल बाद, यह पूरी तरह स्पष्ट है कि यह कदम विशुद्ध रूप से एक राजनीतिक हथकंडा था. जिसका मकसद प्रधानमंत्री को काला धन से लड़नेवाले एक ऐसे जेहादी अवतार के तौर पर पेश करना था, जो भ्रष्ट अमीरों की जान के पीछे पड़ा है. 8 नवंबर, 2016 को स्पष्ट उनके अपने शब्दों में- ‘इसलिए, भ्रष्टाचार, काला धन, नकली नोटों और आतंकवाद के विरुद्ध इस लड़ाई...
More »जलवायु परिवर्तन से खतरे में इंसान --- डॉ गोपाल कृष्ण
जलवायु परिवर्तन की समस्या अब मानव सभ्यता के अस्तित्व के लिए बहुत बड़ा संकट बन चुकी है. दुनियाभर में करोड़ों लोग बीमारियों के शिकार हैं, फसलों की उत्पादकता पर नकारात्मक असर हो रहा है और आम जन-जीवन में कई तरह की एलर्जी की अवधि बढ़ती जा रही है. इसके बावजूद विभिन्न देशों ने इस चुनौती को लेकर लापरवाही का ही नहीं, बल्कि इसे नकारने तक की प्रवृत्ति अपनायी हुई है. संयुक्त...
More »सस्ते आयात से दुश्चक्र में किसान-- रमेश कुमार दूबे
हाल ही में जारी अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान (आइएफपीआरआइ) के वैश्विक भूख सूचकांक में भारत पिछले साल की तुलना में तीन पायदान नीचे लुढ़क कर सौवें स्थान पर पहुंच गया। रिपोर्ट में इसके लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली और मध्यान्ह भोजन योजना में भ्रष्टाचार को जिम्मेदार ठहराया गया है लेकिन यह नहीं बताया गया है कि सस्ते आयात के कारण खेती घाटे का सौदा बनती जा रही है। गौरतलब है...
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