दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जब यूरोप की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई, उस समय उद्योगों को मूलमंत्र मानकर विकास की रूपरेखा तैयार की गई। इसी समय दो बड़े परिवर्तन भी हुए। पहला, विकास की परिभाषा इस तरह गढ़ दी गई, जिसका सीधा-सीधा मतलब था कि उद्योग और उससे जुड़े तमाम आयामों को ही विकास मान लिया जाए। दूसरा, इसके बाद ही भोगवादी सभ्यता का चलन बढ़ा। अपने देश ने भी स्वतंत्रता के बाद...
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शिक्षा में सजा नहीं, रचनात्मकता हो - अर्चना डालमिया
हमारे उपमहाद्वीप में दुनिया के लगभग 19 फीसदी बच्चे रहते हैं। देश की आबादी के एक-तिहाई से ज्यादा हिस्से की, करीब 44 करोड़ लोगों की उम्र 18 वर्ष से नीचे है। केंद्रीय महिला व बाल विकास मंत्रालय के अध्ययन के मुताबिक इस आबादी में से 40 फीसदी को देखभाल और संरक्षण की जरूरत है। इससे पता चलता है कि देश में बच्चों को किस हद तक शारीरिक दुर्व्यवहार का सामना...
More »एक खबर जिसकी हत्या हुई - चंदन श्रीवास्तव
बात आत्महत्या से संबंधित खबरों की हो, तो अपने देश के अखबार आत्महत्या का सामाजिक आधार खोजते हुए शादी-ब्याह तक पहुंचते हैं और यह बताते हैं कि भारत में आत्महत्या कुंवारों से ज्यादा शादीशुदा लोग कर रहे हैं. वर्षो से यही चलन जारी है. इस साल भी एक अखबार ने सुर्खी लगायी है कि ‘शादीशुदा लोगों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति ज्यादा!' और पाठकों को ज्ञान दिया है कि ‘देश...
More »वंचित भारत की कहानी- इंडिया एक्सक्लूजन रिपोर्ट की जुबानी
‘अतुल्य भारत' के भीतर एक वंचित भारत रहता है,दलित और आदिवासी समुदाय इसी वंचित भारत के वासी हैं। क्या इस वंचित भारत का निर्माण राज्यसत्ता के हाथों जीवन के लिए जरुरी बुनियादी सेवा-सामानों से लोगों को बेदखल करके हुआ है? जैसा कि नाम से ही जाहिर है,इंडिया एक्सक्लूजन रिपोर्ट 2013-14 का एक निष्कर्ष यह भी है! (कृपया देखें नीचे दिया गया रिपोर्ट की भूमिका की लिंक) मिसाल के लिए इन...
More »बेदखली का शिकार ‘वंचित भारत’- चंदन श्रीवास्तव
सत्य अनुभव की चीज है, तथ्य आकलन की. तथ्य यह है कि भारत के भीतर एक वंचित भारत रहता है और सत्य यह कि इस वंचित भारत का निर्माण उसे जीवन जीने के लिए जरूरी बुनियादी सेवाओं-सुविधाओं से बेदखल करके हुआ है. बुनियादी सेवा-सुविधाओं से बेदखली के विराट आयोजन का ही नतीजा है कि इस मामले में देश के कुछ समुदाय शेष की तुलना में कोसों पीछे हैं. मिसाल के...
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