किसी भी लोकतांत्रिक देश की सरकार और आम आबादी के बीच सहज-सतत संवाद हर कल्याणकारी राज्यव्यवस्था की बुनियादी जरूरत होती है। जब सरकार ने (बीसवीं सदी के अंतिम दशक में) सूचना प्रसार मंत्रालय की मातहती में चलाई जाती रही रेडियो-टीवी की प्रसारण सेवाओं को प्रसार भारती नामक स्वायत्त इकाई को सौंपा था तो शायद उसके पीछे उसके मार्फत राज्य व नागरिकों के बीच एक भरोसेमंद-मजबूत पुल बनाने का ही लक्ष्य...
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किताबें तो अब भी काम की हैं- चंद्रशेखर तिवारी
ज्ञान को सर्वसुलभ बनाने में पुस्तकालय से बेहतर दूसरा विकल्प शायद ही हो सकता है। इसी बात को ध्यान में रखकर वर्ष 2005 में गठित भारतीय ज्ञान आयोग की पहल पर देश में एक स्वायत्त राष्ट्रीय पुस्तकालय आयोग की स्थापना की गई। इस आयोग की देखरेख में पुस्तकालयों के विकास, संरक्षण व संवर्धन की दिशा में कार्य किया जा रहा है। वर्तमान में देश में सार्वजनिक पुस्तकालयों के चार स्तर...
More »किसानों की खुदकुशी के सबब- विनोद कुमार
जरा गौर कीजिए कि इसी देश में करीब अठारह-बीस करोड़ भूमिहीन दलित, अति पिछड़े मजूर हैं। उनके जीवन में यह मौका ही नहीं आता कि वे बैंक से कर्ज लें, खेती करें, उनकी फसल नष्ट हो और वे आत्महत्या कर लें। इसका अर्थ यह नहीं कि हम किसानों की आत्महत्या से पीड़ा का अनुभव नहीं करते। लेकिन इस बात को समझना तो होगा कि एक भूमिहीन किसान या मजूर आत्महत्या न...
More »किसानों को सता रही सूखे की चिंता
नुआपाड़ा (निप्र)। ओडिशा के नुआपाड़ा जिले में कम बारिश होने के कारण किसानों को इस वर्ष अकाल की चिंता सता रही है। बारिश नहीं होने के कारण आधे से अधिक कृषि भूमि में फसल नष्ट होने के कगार पर है, जिसके कारण किसान वर्ग चिंतित नजर आ रहे हैं। नुआपाड़ा में जुलाई माह में 17 प्रतिशत कम बारिश होना रिकार्ड किया गया है। वहीं इस वर्ष जिला में 54 प्रतिशत...
More »वर्षा के पैटर्न में गंभीर परिवर्तन- भरत झुनझुनवाला
इंद्रदेव देश के साथ आंख मिचौली खेल रहे हैं. जून में वर्षा सामान्य रही. इसके बाद जुलाई के पहले पखवाड़े में वर्षा बहुत कम रही. सूखे की संभावना बढ़ती जा रही थी. लेकिन जुलाई के दूसरे पखवाड़े में देश के तमाम क्षेत्रों में अच्छी वर्षा होने से स्थिति पुन: सामान्य हो गयी है. वर्तमान में वर्षा सामान्य से मात्र दो प्रतिशत कम है. राजस्थान के दक्षिणी इलाकों में भारी वर्षा...
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