छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है लेकिन यहां ऐसे समुदाय भी हैं, जो धान की खेती नहीं करते। उनमें से एक समुदाय है पहाड़ी कोरवा। पहाड़ी कोरवा उन आदिम जनजाति में एक है जिनका जीवन पहाड़ों व जंगलों पर निर्भर है। यह आदिवासी पहाड़ों पर ही रहते हैं और इसलिए इन्हें पहाड़ी कोरवा कहते हैं। ये लोग बेंवर खेती करते हैं जिसमें सभी तरह के अनाज एक...
More »SEARCH RESULT
नदी पुनर्जीवन ही विकल्प-- सुरेश उपाध्याय
माना जाता है कि सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारों पर ही हुआ है। लेकिन हम जिस दौर में जी रहे हैं और विकास की जिस अंधाधुंध दौड़ में शामिल हो गए हैं, उसने सबसे पहला हमला हमारी नदियों पर ही किया है। एक ओर नदियों को प्रदूषित किया जा रहा है तो दूसरी ओर कई नदियां विलुप्ति के कगार पर हैं या विलुप्त हो चुकी हैं। नदियों के शुद्धीकरण...
More »अंग्रेजी की दीवार गिराए बिना नहीं मिलेगी हिंदी को जमीन-- आशुतोष कुमार
हिंदी को लेकर माहौल फिर गर्म होने लगा है। इसके पीछे दो केंद्रीय मंत्रियों के ताजा बयान हैं। एक ने कहा कि हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है। सच्चाई यही है कि संविधान में राष्ट्रभाषा की कोई अवधारणा नहीं है। हिंदी सरकारी भाषा है, अंग्रेजी के साथ-साथ। संविधान लागू करते समय कहा गया था कि अगले पंद्रह वर्षों में अंग्रेजी हटा दी जाएगी। लेकिन गैर हिंदीभाषी राज्यों के विरोध के कारण ऐसा...
More »जैविक खेती की मौन क्रांति-- बाबा मायाराम
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में एक छोटा सा कस्बा है गनियारी। यहां का जन स्वास्थ्य सहयोग अस्पताल है जहां बीमारी के इलाज के साथ उसकी रोकथाम पर जोर दिया जाता है। स्वस्थ रहने के लिए लोगों को अच्छा भोजन मिले इसके लिए कृषि कार्यक्रम चलाया जा रहा है। बिलासपुर जिले के कई गाँवों में किसान जैविक खेती से धान पैदावार बढ़ा रहे हैं। जब वर्ष 2000 में जन स्वास्थ्य सहयोग...
More »सुलगते दार्जिलिंग की राजनीति-- हरिराम पांडेय
पर्यटन के लिए विख्यात दार्जिलिंग में चार दशक पुराना गोरखा आंदोलन फिर से भड़क उठा है। भाषा के नाम पर एक पखवाड़े से चल रहा यह आंदोलन दबने का नाम नहीं ले रहा। दबाने के सरकारी प्रयास आग में घी का काम कर रहे हैं। इस इलाके की सबसे बड़ी पार्टी गोरखा जनमुक्ति मोर्चा नेपाली भाषियों के लिए अलग राज्य की मांग कर रही है। इस आंदोलन से उत्तर बंगाल...
More »