-आउटलुक, “सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे से हम सब परिचित हैं, सरकार को मार्च 2020 में ही सचेत हो जाना चाहिए था कि महामारी का असर ग्रामीण क्षेत्र पर कितना भयावह हो सकता है” जब मैं ये पंक्तियां लिख रहा हूं, देश के ग्रामीण इलाकों से महामारी की वीभत्सता की अनेक तस्वीरें सामने आ चुकी हैं। हमने बिहार और उत्तर प्रदेश में पावन गंगा में बहती लाशों का हृदय विदारक दृश्य भी देखा है।...
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आलेख : नृशंस साम्राज्य
-आउटलुक, “ऐसा प्रचंड संकट आजादी के बाद से नहीं आया था, अब तो मोदी समर्थक भी मानने लगे हैं कि महामारी में सरकार का रवैया सारे दायित्व से हाथ झाड़ लेने का रहा है” इस 9 मई को पिंजरा तोड़ आंदोलन की अगुआ छात्र एक्टिविस्ट नताशा नरवाल के पिता महावीर नरवाल कोविड महामारी से जंग हार गए। वे दुनिया से विदा होने के पहले अपनी बेटी से मिल या बात नहीं कर...
More »“मोदी ने देश को घुटनों पर ला दिया”: टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा
-आउटलुक, तृणमूल काग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा मोदी सरकार की प्रखर आलोचक हैं। हाल के चुनावी नतीजों, केंद्र सरकार के सात साल के कामकाज, मौजूदा दौर में उसकी छवि, कोविड की दूसरी लहर और केंद्र-राज्य संबंध जैसे विषयों पर आउटलुक के प्रीता नायर ने उनसे बात की। मुख्य अंश: हाल के वर्षों में केंद्र-राज्य संबंधों को आप कैसे देखती हैं? इस सरकार ने संघीय ढांचे को तार-तार कर दिया है। इसके दो कानूनों को लीजिए- एनआइए और...
More »'पक्ष'कारिता: आज मर रहे पत्रकारों को बचाइए, उम्मीद बची तो कल पत्रकारिता भी बच जाएगी
-न्यूजलॉन्ड्री, कोविड-19 के कसते शिकंजे के आलोक में हिंदी के ज्यादातर अखबारों के अचानक बदले चरित्र और जनपक्षधर रिपोर्टिंग पर पिछले अंक में एक सरसरी तौर पर इशारा था, हालांकि वह स्तम्भ बंगाल चुनाव पर केंद्रित था. अखबारों का आलोचनात्मक रुझान अब भी कायम है, बल्कि और तीखा हुआ है. अच्छी बात यह है कि छोटे-छोटे शहरों के अखबारी संस्करणों और छोटे प्रकाशनों (मुद्रित और ऑनलाइन) में जनता के दुख-दर्द की...
More »'हम कोरोना से बच भी गए तो ग़रीबी से मर जायेंगे' : जम्मू-कश्मीर के कामगार लड़ रहे ज़िंदा रहने की लड़ाई
-न्यूजक्लिक, जम्मू-कश्मीर में कोविड-19 की वजह से लॉकडाउन के विस्तार ने श्रमिक वर्ग के परिवारों के लिए अभूतपूर्व दुख पैदा किया है जो बस खाने भर का कमा पाते हैं। लॉकडाउन ने ऑटो रिक्शा चालकों, टैक्सी चालकों, शिकारा (हाउस बोट) के मालिकों, हस्तकला श्रमिकों, दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों और संविदाकर्मियों को छोड़ दिया है, जो अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जैसा कि वे अपने घरों में सीमित रहते...
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